Over 8,000 government schools have seen zero new enrollments, yet appointments continue – official data
नई दिल्ली – 8,000 से अधिक सरकारी स्कूलों में नहीं हुई एक भी नई नाम-नामांकन, फिर भी नियुक्तियाँ जारी– आधिकारिक आंकड़े
नई दिल्ली, 28 अक्टूबर 2025 – देश के कई हिस्सों में शिक्षा व्यवस्था में गहरी खामी सामने आई है: लगभग 8,000 से अधिक सरकारी स्कूलों में एक भी नया विद्यार्थी नहीं नामांकन हुआ, फिर भी उन स्कूलों में शिक्षक नियुक्तियाँ जारी हैं। यह जानकारी हाल ही में जारी सरकारी आंकड़ों एवं शिक्षा विभाग की रिपोर्टों में दर्ज की गई है।

प्रमुख तथ्य
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• रिपोर्ट के अनुसार, कुछ स्कूलों में नामांकन शून्य होने के बावजूद शिक्षकों की तैनाती की गई है, जो संसाधनों के उपयोग और शिक्षा नीतियों की दिशा-प्रक्रिया पर सवाल उठाती है।
• देशभर में ऐसे स्कूलों की संख्या बढ़ रही है जहाँ विद्यार्थियों की संख्या बेहद कम है या लगभग शून्य दर्ज की गई है। उदाहरणस्वरूप, झारखंड में अकेले 8,000 से अधिक स्कूलों में केवल एक शिक्षक तैनात है।
• सरकार के एक आधिकारिक दस्तावेज़ में कहा गया है कि भारत में 1,04,125 से अधिक ऐसे स्कूल हैं, जिनमें सिर्फ एक शिक्षक तैनात है और इन स्कूलों में लगभग 33.8 लाख विद्यार्थी अध्ययनरत हैं।
• इस तरह की स्थिति शिक्षा-नीति के अनुशासित क्रियान्वयन, संसाधन आवंटन, तथा ग्रामीण और दूरदराज़ इलाकों में स्कूल संचालन की क्षमता पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
समस्या के बिंदु
- 1. नामांकन की कमी: जब स्कूलों में नए विद्यार्थियों का नामांकन नहीं हो रहा है, तो स्कूल की व्यवहार्यता और संसाधन उपयोग पर असर पड़ता है।
2. शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात: शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के अनुसार उचित शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात होना चाहिए। लेकिन एक-शिक्षक स्कूलों की बड़ी संख्या इस अनुपात को दर्शाती खामी बताती है।
3. संसाधन का अव्यवस्थित उपयोग: जब शिक्षक नियुक्त हैं पर विद्यार्थी नहीं हैं, तो प्रश्न उठता है — क्या यह तैनाती सिर्फ ‘कागजी’ है या वास्तव में शिक्षा-संचालन हो रहा है।
4. क्षेत्रीय असमानताएँ: अधिकांश ऐसी स्थिति ग्रामीण, आदिवासी व पिछड़े क्षेत्रों में पाई जा रही है, जहाँ स्कूल संचालन, परिवहन, अभिभावक जागरूकता, स्थानीय सामाजिक-आर्थिक कारक चुनौतियाँ बन रहे हैं।इसके सामाजिक-शैक्षिक प्रभाव
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• विद्यार्थी-संख्या कम होने के कारण क्लास-रूम गतिविधियाँ सीमित हो सकती हैं, शिक्षक की सक्रिय भागीदारी व संसाधन का उपयोग प्रभावित हो सकता है।
• जब एक ही शिक्षक पूरे स्कूल को संभाले, तो शिक्षण-गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है — विशेष रूप से जहाँ मल्टी-ग्रेड क्लास चल रही हों।
• नामांकन गिरने और छात्र-संख्या कम होने से ड्रॉप-आउट का खतरा बढ़ता है, क्योंकि अभिभावक विद्यालय पर भरोसा नहीं कर पाते।
• संसाधनों (शिक्षक, पाठ्य-सामग्री, कक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर) का अप्रभावी उपयोग होने की संभावना है, जिससे राज्यों-केंद्र सरकार की शिक्षा योजनाओं की प्रभावशीलता कमजोर पड़ सकती है।
- दिशा-निर्देश व सुधार-सुझाव
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• स्कूल अनुकूलन (School Rationalisation): ऐसे स्कूल जहाँ नामांकन बेहद कम है, उन्हें वन-स्टॉप संसाधन केंद्रों में बदलना या अभिभावक जागरूकता बढ़ाना।
• शिक्षक नियुक्ति रणनीति: शिक्षक-तैनाती सिर्फ संख्या बढ़ाने तक सीमित न हो, बल्कि तैनात शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात, स्कूल सक्रियता व स्थानीय आबादी-डाटा के अनुरूप हो।
• स्थानीय भागीदारी: स्थानीय समाज, पंचायत/नगर परिषद और अभिभावक-समूहों को शिक्षा-प्रक्रिया में सक्रिय करना ताकि नामांकन व नियमित उपस्थिति सुनिश्चित हो सके।
• डाटा-उन्मुख निर्णय-प्रक्रिया: UDISE+ जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से नामांकन, शिक्षक तैनाती, उपस्थिति, संसाधन-उपयोग आदि डेटा निरंतर मॉनिटर करना।
• बहु-ग्रेड शिक्षण मॉडल का विकास: जहाँ छात्र-संख्या कम हो, वहाँ मल्टी-ग्रेड शिक्षण व डिजिटल माध्यमों का उपयोग बढ़ाना। - जब एक ओर शिक्षक नियुक्त किये जा रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर स्कूलों में नए विद्यार्थियों का शामिल होना बंद हो गया है, तो यह सिर्फ एक आंकड़ों की समस्या नहीं — यह शिक्षा-प्रणाली की गहराई में फैली विसंगति को दर्शाता है। यदि जल्द उचित कदम नहीं उठाए गए, तो देश की ग्रामीण व पिछड़ी आबादी के बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रहने का जोखिम है।
शिक्षा सिर्फ ‘कक्षा खोलने’ का काम नहीं, बल्कि विद्यार्थी-समय, शिक्षक-सक्षम व संसाधक-उपयुक्त वातावरण का निर्माण है। ऐसे में नीति-निर्माताओं, राज्य-शिक्षा विभागों व स्थानीय स्तर के अभिभावकों को संयुक्त रूप से काम करने की आवश्यकता है।
“शिक्षा के वास्तविक आधार वह है जहाँ एक शिक्षक के सिवाय स्कूल में कोई नया विद्यार्थी आ सक रहा है — यह हमारी सामाजिक-शैक्षिक चुनौती है।”
हमारी अगली कार्रवाई ही तय करेगी कि इन स्कूलों में “नामांकन शून्य” का आंकड़ा कम होगा या शिक्षा-क्रांति आगे बढ़ेगी
