नई दिल्ली – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 22वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में भाग लेते हुए कहा – “भारत और आसियान केवल व्यापारिक साझेदार नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और रणनीतिक भागीदार हैं।”
उनका यह बयान भारत की “Act East Policy” को एक नई ऊँचाई देता है। इस सम्मेलन के दौरान 2026 को “भारत–आसियान समुद्री सहयोग वर्ष” घोषित किया गया, जो यह दर्शाता है कि आने वाले वर्षों में भारत अपने पूर्वी पड़ोसी देशों के साथ न केवल आर्थिक बल्कि सामरिक साझेदारी को भी सशक्त करेगा।
आसियान क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?
आसियान (ASEAN) यानी Association of Southeast Asian Nations की स्थापना 1967 में हुई थी, जिसमें वर्तमान में 10 सदस्य देश शामिल हैं —
इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिलीपींस, वियतनाम, लाओस, म्यांमार, ब्रुनेई और कंबोडिया।
यह समूह दक्षिण-पूर्व एशिया के आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक मामलों में एक अहम संगठन है। दुनिया की लगभग एक चौथाई जनसंख्या और वैश्विक GDP का 10% से अधिक हिस्सा इस क्षेत्र में है।
भारत के लिए आसियान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह समूह भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से भौगोलिक रूप से जुड़ा है और यह क्षेत्र इंडो-पैसिफिक रणनीति में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
भारत–आसियान संबंधों का इतिहास
भारत और आसियान के बीच औपचारिक संबंध 1992 में शुरू हुए थे, जब भारत ने “Look East Policy” की घोषणा की। बाद में 2014 में मोदी सरकार ने इसे और सक्रिय रूप देते हुए इसे “Act East Policy” नाम दिया।
इस नीति का उद्देश्य था –
- दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से व्यापार और निवेश बढ़ाना,
- सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करना,
- सुरक्षा और समुद्री सहयोग को गहरा बनाना।
2002 में पहली बार भारत–आसियान शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। आज भारत आसियान का एक “Strategic Partner” है और दोनों पक्षों के बीच 30 से अधिक सहयोग क्षेत्रों में साझेदारी चल रही है — जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, डिजिटल कनेक्टिविटी, ऊर्जा, पर्यावरण, और समुद्री सुरक्षा।
समुद्री सहयोग: हिंद-प्रशांत में भारत की भूमिका
प्रधानमंत्री मोदी ने 2026 को “भारत–आसियान समुद्री सहयोग वर्ष” घोषित कर यह संकेत दिया है कि भारत अब Blue Economy (नीली अर्थव्यवस्था) और Maritime Security (समुद्री सुरक्षा) को लेकर ज्यादा सक्रिय होगा।
भारत की नौसेना पहले से ही सिंगापुर, इंडोनेशिया, वियतनाम और मलेशिया के साथ संयुक्त अभ्यास करती है।
इसका उद्देश्य है —
- हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में मुक्त नौवहन (Freedom of Navigation) सुनिश्चित करना।
- चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना।
- आपदा प्रबंधन और समुद्री डकैती से निपटना।
व्यापार और आर्थिक संबंध
भारत और आसियान के बीच साल 2024 में 131 बिलियन डॉलर से अधिक का द्विपक्षीय व्यापार हुआ।
भारत मुख्यतः इन देशों को खाद्य उत्पाद, दवाइयाँ, ऑटो पार्ट्स, और टेक्नोलॉजी निर्यात करता है, जबकि इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, तेल और पाम ऑयल आयात करता है।
भारत चाहता है कि आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTA) में संतुलन और पारदर्शिता लायी जाए ताकि दोनों पक्ष समान लाभ उठा सकें।
सुरक्षा और भू-राजनीतिक महत्व
भारत और आसियान का सहयोग सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक सुरक्षा से भी जुड़ा है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र आज वैश्विक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बन चुका है, जहाँ अमेरिका, चीन, जापान और भारत जैसे देश अपनी भूमिका निभा रहे हैं।
भारत का उद्देश्य है कि समुद्री मार्ग सुरक्षित रहें, कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स (जैसे भारत-म्यांमार-थाईलैंड हाईवे) समय पर पूरे हों, और दक्षिण चीन सागर में किसी भी एकतरफा सैन्य विस्तार को रोका जा सके।
चुनौतियाँ और सीमाएँ
हालाँकि भारत–आसियान संबंध लगातार प्रगाढ़ हो रहे हैं, फिर भी कुछ चुनौतियाँ मौजूद हैं —
- व्यापार असंतुलन: भारत को आसियान देशों से अधिक आयात होता है।
- चीन का दबदबा: कई आसियान देश चीन के आर्थिक प्रभाव में हैं।
- राजनीतिक अस्थिरता: म्यांमार और थाईलैंड जैसे देशों में सैन्य हस्तक्षेप से नीतिगत अस्थिरता।
- बुनियादी ढाँचा: भारत की कनेक्टिविटी परियोजनाएँ धीमी गति से आगे बढ़ रही हैं।
भविष्य की संभावनाएँ
भारत–आसियान संबंधों का भविष्य बेहद उज्ज्वल है। दोनों पक्ष निम्न क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दे सकते हैं:
- Digital India–ASEAN Connect: डिजिटल भुगतान, AI, और साइबर सुरक्षा में सहयोग।
- Tourism Corridors: बौद्ध सर्किट, संस्कृति और पर्यटन को जोड़ना।
- Education & Skill Development: छात्रों और स्टार्टअप्स के लिए साझा प्लेटफ़ॉर्म।
- Defence Cooperation: नौसेना अभ्यास और रक्षा उत्पादन में सहयोग।
- Green Energy: सौर और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी।
- भारत और आसियान की साझेदारी सिर्फ आर्थिक या रणनीतिक नहीं, बल्कि सभ्यता और संस्कृति की साझी जड़ें हैं।
पीएम मोदी का यह संदेश कि “21वीं सदी एशिया की सदी होगी” अब केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक दिशा है।
यदि भारत और आसियान मिलकर अपनी क्षमताओं का उपयोग करें, तो यह साझेदारी न केवल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति लाएगी, बल्कि वैश्विक मंच पर एक नया संतुलन भी स्थापित करेगी।
