नई दिल्ली, 28 अक्टूबर 2025 – देश के कई हिस्सों में बारिश की कमी, प्रदूषण और सूखे जैसी समस्याओं से निपटने के लिए वैज्ञानिक अब “क्लाउड सीडिंग” यानी कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) की तकनीक का सहारा ले रहे हैं। लेकिन सवाल है — आखिर ये तकनीक काम कैसे करती है और इसमें कौन-कौन से रासायनिक तत्व उपयोग किए जाते हैं? आइए जानते हैं पूरी जानकारी।
🌧️ क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें आसमान में मौजूद बादलों को कृत्रिम रूप से बारिश करवाने के लिए “सीड” यानी रासायनिक कणों से भरा जाता है। इन कणों में प्रायः सिल्वर आयोडाइड (Silver Iodide), सोडियम क्लोराइड (Sodium Chloride) या पोटैशियम आयोडाइड (Potassium Iodide) जैसी रासायनिक पदार्थ शामिल होते हैं।
इन रासायनिक कणों को विशेष विमान, ड्रोन या रॉकेट की मदद से बादलों में छोड़ा जाता है। जब ये कण बादलों के अंदर पहुंचते हैं, तो वे संघनन (Condensation) को बढ़ाते हैं — जिससे पानी की बूंदें बनती हैं और बारिश होती है।
यह तकनीक कैसे काम करती है?
- सबसे पहले वैज्ञानिक बादलों की नमी और तापमान का सैटेलाइट या मौसम रडार से विश्लेषण करते हैं।
- उपयुक्त बादल मिलने पर, विमान में लगे उपकरणों के माध्यम से सीडिंग मटेरियल (Seed Particles) छोड़े जाते हैं।
- ये कण बादलों में संघनन के केंद्र (Condensation Nuclei) की तरह काम करते हैं।
- नमी जमा होकर बूंदों में बदलती है और फिर बारिश के रूप में नीचे गिरती है।
इस तरह, जहां प्राकृतिक रूप से बारिश नहीं होती, वहां भी मौसम की परिस्थितियों के अनुरूप कृत्रिम वर्षा कराई जा सकती है।
भारत में क्लाउड सीडिंग के प्रयोग
भारत में क्लाउड सीडिंग तकनीक का प्रयोग कई बार किया जा चुका है —
- दिल्ली NCR में बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए इस साल (2025) सरकार ने क्लाउड सीडिंग की योजना बनाई है।
- महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सूखे के दौरान भी यह तकनीक अपनाई गई है।
- इजराइल, अमेरिका, चीन और UAE जैसे देशों में यह तकनीक लंबे समय से मौसम नियंत्रण के लिए प्रयोग की जा रही है।
फायदे क्या हैं?
- सूखे क्षेत्रों में कृषि को राहत मिलती है।
- वायु प्रदूषण कम करने में मददगार।
- जल-संरक्षण और भू-जल स्तर को बढ़ाने में सहायक।
- बिजली उत्पादन के लिए जलस्त्रोतों को रिचार्ज करने में उपयोगी।
जोखिम और चुनौतियाँ
- रासायनिक तत्वों से पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है।
- सफलता दर 100% नहीं है — यह मौसम, हवा की दिशा और नमी पर निर्भर करती है।
- इसकी लागत बहुत अधिक है; एक बार की सीडिंग पर लाखों रुपये खर्च होते हैं।
क्लाउड सीडिंग तकनीक मानव सभ्यता की बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धियों में से एक है। यह न केवल सूखा-प्रभावित क्षेत्रों के लिए राहत बन सकती है, बल्कि प्रदूषण से जूझते महानगरों में आसमान से समाधान भी दे सकती है।
हालांकि, इसके पर्यावरणीय असर और लागत को ध्यान में रखते हुए, इसका उपयोग वैज्ञानिक निगरानी और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए।
“अगर बादल नहीं बरसते, तो विज्ञान अब उन्हें बरसाना सिखा चुका है — यही है क्लाउड सीडिंग का चमत्कार।”
