पटना (बिहार) — 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए गठबंधन ने अपना संकल्प पत्र जारी कर किसानों को बड़ा प्रस्ताव दिया है। घोषणापत्र में यह वादा किया गया है कि राज्य में उन किसानों को, जो केंद्र की Pradhan Mantri Kisan Samman Nidhi योजना के लाभार्थी हैं, अब सालाना ₹6,000 की बजाय ₹9,000 दिए जाएंगे।
घोषणापत्र में किसानों के लिए मुख्य वादे
- केंद्रीय योजना के लाभार्थियों को राज्य स्तर पर अतिरिक्त राशि देकर सालाना ₹9,000 देने का वादा किया गया है।
- इस अतिरिक्त राशि को राज्य सरकार की ओर से “कर्पूरी ठाकुर किसान सम्मान निधि” नामक नई योजना के तहत दिया जाएगा।
- यह वादा अकेले किसान लाभार्थियों तक सीमित नहीं है — घोषणापत्र में कर्मचारियों के लिए रोजगार, महिला सशक्तीकरण, स्वास्थ्य-व्यवस्था तथा शहरी व ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कई अन्य प्रमुख घोषणाएँ भी शामिल हैं।
इस वादे का महत्व और चुनौतियाँ
महत्व:
- कृषि-लक्षित योजनाओं पर ऐसी बड़ी राशि का वादा राज्य के किसानों के लिए सहारा माना जा सकता है, जहाँ खेती आसान नहीं रही है और लागत लगातार बढ़ रही है।
- चुनावी दृष्टि से यह वादा एक प्रबल संदेश देता है कि एनडीए किसानों को मुख्य वोटर समूह के रूप में देख रही है और उनके हित को एजेंडा में ला रही है।
- जैसा कि विश्लेषण बताते हैं, यह घोषणापत्र जो रोजगार-पलायन-कृषि पर केंद्रित है, वहीं इस तरह के वादे किसानों की स्थिति को बेहतर करने की दिशा में प्रतीकात्मक भूमिका निभा सकते हैं।

चुनौतियाँ:
- वादा करते समय यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि ₹9,000 की राशि किसे और कैसे दी जाएगी — सब किसान लाभार्थी होंगे या कुछ शर्तें होंगी।
- अमल-वहन (implementation) में कई राज्यों में पहले भी कृषि-योजनाओं में देरी या कम वितरण की समस्या रही है। इस वादे के सफल क्रियान्वयन में प्रशासनिक, वित्तीय और बुनियादी चुनौतियाँ आ सकती हैं।
- यह भी देखा जाना है कि इस राशि को राज्य-वित्त में कैसे जोड़ा जाएगा — यदि बजट व स्रोत स्पष्ट नहीं होंगे तो वादा कागज़ों में रह सकता है।
एनडीए का यह वादा — किसानों को सालाना ₹9,000 देने का — राज्य की राजनीति व सामाजिक-आर्थिक धरातल पर एक बड़ा संकेत है। यह किसानों को समर्पित एक विशेष एजेंडा प्रस्तुत करता है।
हालाँकि, केवल वादा काफी नहीं होगा — वास्तव में लागू करना और किसानों तक समय-सीमा में राशि पहुँचाना तय करेगा कि यह कदम कितना प्रभावी साबित होता है।
वोटरों की नजर अब इस पर होगी कि इस वादे को हकीकत में कितना बदला जाता है।
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