New Delhi (babajinews) – भारत आज दुनिया के सबसे तेज़ी से विकसित होते राष्ट्रों में से एक है, लेकिन इसके सामने कुछ ऐसी आंतरिक और बाहरी चुनौतियाँ हैं जो इसकी स्थिरता, एकता और विकास की रफ्तार को प्रभावित कर सकती हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल ने हाल ही में कहा कि भारत की सुरक्षा-व्यवस्था केवल सीमा की रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अब आंतरिक आतंकवाद, नक्सलवाद, साइबर अपराध, आर्थिक सुरक्षा और वैचारिक हमलों तक फैली हुई है। डोभाल के इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि भारत की सुरक्षा-रणनीति अब पारंपरिक सोच से आगे बढ़कर आधुनिक, बहु-आयामी और आक्रामक दिशा में विकसित हो रही है।

आतंकवाद पर नियंत्रण – भारत की रणनीतिक सफलता
अजीत डोभाल ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने आतंकवाद को काफी हद तक काबू में किया है, और देश में बड़ी आतंकी घटनाएँ घटकर लगभग शून्य के स्तर पर पहुँच गई हैं। केवल जम्मू-कश्मीर में ही आतंक की छिटपुट घटनाएँ अब भी सामने आती हैं। इसका कारण है कि भारत ने अब “रिएक्टिव” नहीं बल्कि “प्रो-एक्टिव” (सक्रिय) नीति अपनाई है — जहाँ दुश्मन के कदम उठाने से पहले ही जवाब दिया जाता है।
सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक और आतंकी फंडिंग पर नकेल जैसी कार्रवाइयाँ इसी नीति के उदाहरण हैं। आतंकवाद अब सिर्फ सैन्य नहीं बल्कि सूचना, आर्थिक और वैचारिक स्तर पर भी चुनौती है, इसलिए भारत ने इसे “समग्र सुरक्षा” के दृष्टिकोण से संभालना शुरू किया है।
नक्सलवाद – भारत की आंतरिक जड़ पर हमला
NSA डोभाल ने यह स्वीकार किया कि नक्सलवाद (वाम उग्रवाद) अभी भी भारत के कुछ हिस्सों में एक गंभीर खतरा है। यह खतरा सिर्फ बंदूकधारी माओवादी संगठनों का नहीं, बल्कि यह एक वैचारिक लड़ाई है जो सामाजिक असमानता, गरीबी, बेरोज़गारी और प्रशासनिक उपेक्षा से उत्पन्न हुई है।
भारत सरकार ने इसके लिए “सिक्योरिटी + डेवलपमेंट” मॉडल अपनाया है — यानी सुरक्षा बलों के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली और रोजगार के साधन भी उन इलाकों तक पहुँचाए जा रहे हैं जहाँ पहले सरकार की पहुँच बहुत कमजोर थी।
डोभाल का मानना है कि अगर लोगों को यह भरोसा दिला दिया जाए कि सरकार उनकी सुरक्षा और विकास दोनों की गारंटी देती है, तो नक्सलवाद की विचारधारा अपनी जड़ें खो देगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा – अब सिर्फ सीमा की बात नहीं
अजीत डोभाल ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा अब केवल सीमाओं की रक्षा नहीं रह गई है, बल्कि यह एक समग्र अवधारणा (Comprehensive Concept) बन चुकी है।
आज के दौर में साइबर अटैक, सूचना युद्ध, फेक न्यूज, सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा, आर्थिक दबाव और जैविक खतरे (biological threats) भी देश की सुरक्षा को प्रभावित कर सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि देश को ऐसे नागरिकों की ज़रूरत है जो “सिक्योरिटी माइंडेड” हों — यानी जिन्हें यह समझ हो कि हर व्यक्ति की सजगता, देश की सामूहिक सुरक्षा में योगदान देती है।
उदाहरण के लिए, एक साइबर हमले को रोकने के लिए सिर्फ सेना नहीं बल्कि आम नागरिक की सावधानी भी ज़रूरी है।
भारत की रणनीति – आत्मनिर्भर सुरक्षा और वैश्विक भूमिका
आज भारत सिर्फ अपनी रक्षा नीति पर नहीं, बल्कि अपनी सुरक्षा तकनीक, हथियार निर्माण, खुफिया तंत्र और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी पर भी ज़ोर दे रहा है।
NSA डोभाल के नेतृत्व में भारत ने अमेरिका, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ क्वाड (QUAD) जैसे गठबंधन में अपनी भूमिका मजबूत की है।
उनका मानना है कि भारत को सिर्फ खतरे का जवाब देने वाला देश नहीं, बल्कि “खतरा रोकने वाला देश” (Deterrent Power) बनना चाहिए। इसके लिए आधुनिक तकनीक, स्वदेशी रक्षा उत्पादन और मजबूत इंटेलिजेंस नेटवर्क पर काम किया जा रहा है।
अजीत डोभाल का दृष्टिकोण भारत की नई सुरक्षा नीति की दिशा दिखाता है। उनका संदेश साफ है — “सुरक्षा सिर्फ सेना का विषय नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।”
भारत ने आतंकवाद के खिलाफ उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, लेकिन नक्सलवाद, साइबर अपराध और वैचारिक युद्ध जैसी नई चुनौतियों के लिए उसे निरंतर सजग और तैयार रहना होगा।
आज का भारत न केवल अपने सीमांत की रक्षा कर रहा है, बल्कि वह एक आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और जागरूक राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है — जो “सुरक्षा” को विकास और स्थिरता के साथ जोड़कर देखता है।
