Punjab (पंजाब) में “पराली जलाने” की समस्या हर साल की तरह इस बार भी चिन्ताजनक रूप ले रही है। रिपोर्ट के अनुसार इस सीजन में 15 सितंबर से 31 अक्टूबर तक राज्य में खेतों में पराली जलाने के 1,642 मामले सामने आए हैं। इसके जवाब में राज्य सरकार व संबंधित विभागों ने 353 हॉट-स्पॉट गाँवों में विशेष निगरानी के लिए Punjab Police व अन्य सुरक्षा बलों-संस्थाओं को तैनात किया है। इसके साथ ही 430 एफआईआर (फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट) भी दर्ज की गई हैं।
यह मामला सिर्फ एक कृषि-प्रश्न नहीं है बल्कि पर्यावरण, स्वास्थ्य, सामाजिक-वित्त-नीति एवं कानून-व्यवस्था को छूता हुआ है। नीचे उस पर गहराई से चर्चा करेंगे।
मुख्य बिंदु
- घटनाओं का स्वरूप और संख्या
- कुल 1,642 मामलों में खेतों में पराली जलाने की पुष्टि हुई है।
- इनमें से 430 एफआईआर दर्ज की गई — मतलब लगभग 1/4 मामलों में औपचारिक मामला दर्ज हुआ।
- सबसे ज्यादा मामले Tarn Taran जिले में हैं — जहाँ पर 374 स्थानों पर पराली जलाई गई।
- हॉट-स्पॉट गाँवों की संख्या 353 है, जहां निगरानी विशेष रूप से बढ़ा दी गई है।
- इन जगहों पर लगभग 1,700 जवान तैनात किए गए हैं, जिनमें शामिल हैं Punjab Pollution Control Board की मॉनिटरिंग टीम, पुलिस, ग्राउंड एनफोर्समेंट आदि।
- प्रशासनिक एवं सुरक्षा प्रतिक्रिया
- इस कार्रवाई को बढ़ावा मिलता है क्योंकि नौसिखियों द्वारा पराली जलाने से मौसम-दुष्प्रभाव, वायु-दूषण और स्वास्थ्य जोखिम बढ़ गए हैं।
- राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PPCB) ने 15 सितंबर से निगरानी शुरू की है।
- पुलिस और अन्य अधिकारियों द्वारा सक्रिय मोर्चेबंदी की जा रही है, ताकि पराली जलाने वालों पर कार्रवाई हो सके और चेतावनी-सही प्रभाव बने।
- प्रशासन ने न सिर्फ दंडात्मक उपाय (‘एफआईआर’, जुर्माना) अपनाए हैं बल्कि “प्रोत्साहन” (इनसे न जलायें) की दिशा में भी कदम उठाये हैं।
- भौगोलिक एवं समय-प्रवाह संबंधी विवरण
- पराली जलाने की घटनाएँ गेहूँ की बुआई के समय नज़दीक आने के कारण बढ़ रही हैं।
- उदाहरण के लिए, तीन दिन लगातार में इस सीजन में एक दिन में 224 मामले दर्ज किए गए हैं।
- जिलेवार आंकड़े बताते हैं कि Tarn Taran के बाद Sangrur (281 मामले) और Amritsar (197 मामले) क्रमशः दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं।
सामाजिक-पर्यावरणीय प्रभाव
- वायु-दूषण और स्वास्थ्य: पराली जलाने से भारी मात्रा में धुआँ निकलता है, जिसमें धुँए के कण (PM2.5, PM10) शामिल होते हैं। ये सांस की बीमारियाँ, आँखों में तकलीफ, थकान और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं।
- मिट्टी व जलवायु प्रभाव: पराली जलने से मिट्टी में लाभदायक जैविक तत्वों की कमी होती है और कार्बन डाइऑक्साइड व अन्य ग्रीनहाउस गैसें वातावरण में जाती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन जोखिम बढ़ सकता है।
- कृषक-वित्तीय समस्या: अक्सर कृषि-समय में पराली जलाना त्वरित समाधान लगता है क्योंकि किसान के पास अन्य विकल्प सीमित होते हैं। लेकिन इस प्रक्रिया से जुर्माना, एफआईआर और निगरानी बढ़ने से किसानों पर अतिरिक्त दबाव बनता है।
- समाजिक व कानूनी प्रभाव: जब प्रशासन सख्ती दिखाता है, तो सामाजिक तनाव, न्याय-प्रक्रिया की लागत और कानून-व्यवस्था का असर सामने आता है। किसानों को चेतावनी के स्थान पर विकल्प व सहयोग देना एक चुनौती है।
चुनौतियाँ और सुझाव
चुनौतियाँ:
- किसानों को पराली को अन्य उपयोग में लाने (उदाहरण के लिए कंपोस्टिंग, बायो-मास प्लांट) के विकल्प सीमित हो सकते हैं।
- हॉट-स्पॉट गाँवों में निगरानी होने के बावजूद हर घटना पकड़ी नहीं जा सकती — कुछ मामलों में घटनाएँ छिपाई भी जा सकती हैं।
- दंडात्मक उपायों (एफआईआर, जुर्माना) पर्याप्त प्रेरक नहीं होते यदि साथ में वैकल्पिक समाधान न हों।
सुझाव:
- किसानों को पराली प्रबंधन के वैकल्पिक एवं किफायती उपाय पेश करना जरूरी है — जैसे स्ट्रॉ चॉपर मशीनें, बायोचार उत्पादन, खेत में ही पुन:उपयोग।
- निगरानी के साथ-साथ शिक्षा एवं जागरूकता कार्यक्रम चलाना होगा — ताकि किसानों को समझ आये कि पराली जलाना उनके स्व-हित और पर्यावरण-हित में नहीं है।
- सरकार एवं स्थानीय प्रशासन को सहायता-योजना और सब्सिडी देना चाहिए ताकि किसान बेहतर विकल्प अपनाएं।
- डेटा-निगरानी एवं तकनीकी समाधान (ड्रोन, सैटेलाइट तस्वीरें) का बेहतर उपयोग होना चाहिए ताकि हॉट-स्पॉट क्षेत्रों में समय-रोधी कार्रवाई हो सके।
पंजाब में पराली जलाने के मामले इस साल भी बड़े पैमाने पर सामने आए हैं — 1,642 मामले और 430 एफआईआर इस बात का संकेत हैं कि समस्या अभी हल नहीं हुई है। प्रशासन ने 353 हॉट-स्पॉट गाँवों में 1,700 से अधिक जवान तैनात कर सक्रियता दिखाई है, लेकिन केवल निगरानी व दंड से समस्या का स्थायी समाधान संभव नहीं है।
पराली जलाने की घटना सिर्फ “किसान का त्वरित उपाय” नहीं बल्कि पर्यावरणीय, स्वास्थ्य-समाज व कानूनी प्रतिफल लेकर आती है। इसलिए समाधान बहुआयामी होना चाहिए — जिसमें किसानों को सहयोग, पर्यावरणीय विकल्प, तकनीकी सहायता एवं शिक्षा-जागरूकता देना शामिल हो। यदि ये सब मिलकर काम करें, तो पंजाब में पराली जलाने की प्रवृत्ति समय के साथ कम हो सकती है और एक साफ-स्वस्थ व स्थायी कृषि-पर्यटन-पर्यावरणीय मॉडल विकसित हो सकता है।
