मुंबई — आज के समय में किसी भी नेता का बयान सियासी गलियों में तूफ़ान लाने का पूरा काम करता है कुछ ऐसा ही काम Maharashtra की राजनीति में हुआ है यहाँ एक मंत्री के बयान ने कुछ ऐसा कहा है कि अचानक हलचल तेज हो गई है और इस बार फिर निगरानी (surveillance) का मुद्दा सामने आया है। कथित तौर पर राज्य के कुछ मंत्रियों तथा पार्टी कार्यकर्ताओं को अपना मोबाइल फोन बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उन्हें यह आशंका है कि उनकी कॉल्स, व्हाट्सएप ग्रुप्स तथा संवाद टैप किए जा रहे हैं।
आरोप क्या हैं?
- Chandrashekhar Bawankule नामक राजस्व मंत्री ने एक पार्टी कार्यक्रम में कहा कि भाजपा के बूथ प्रमुखों के लगभग एक लाख व्हाट्सएप ग्रुप्स सीधे ’वार-रूम’ से जुड़े हैं, जहाँ से व्हाट्सएप ग्रुप्स और कार्यकर्ता संवाद पर नजर रखी जाती है।
- इसके बाद Nationalist Congress Party-संबद्ध नेता का दावा है कि कई विपक्षी मंत्री तथा अधिकारी फिलहाल टेलीफोन बंद रखे हुए हैं, क्योंकि उन्हें भय है कि उनके कॉल रिकॉर्ड टैप हो सकते हैं।
राज्य में निकाय (स्थानीय शासन) चुनाव निकट हैं, और इस प्रकार का आरोप समय-सापेक्ष माना जा रहा है। ऐसा समय जब राजनीतिक दलों को बूथ-वर्क, व्हाट्सऐप ग्रुप संवाद, फील्ड ऑफिसर नेटवर्क आदि पर विशेष निर्भरता होती है — ऐसे में ‘निगरानी’ का डर और भी ज़्यादा महसूस किया जा रहा है।
राजनीतिक एवं संवैधानिक मायने
- अगर सच में फोन टैपिंग हो रही है तो यह गोपनीयता और अभिव्यक्ति की आज़ादी का मामला बन सकता है।
- विपक्षी दलों का तर्क है कि इस तरह की निगरानी से सत्ता पक्ष को असम उचित लाभ मिल सकता है।
- सत्ता पक्ष का कहना है कि संवाद नियंत्रित करने का उद्देश्य केवल आंतरिक अनुशासन और संवाद व्यवस्था है, किसी अवैध टैपिंग का प्रमाण नहीं दिया गया।
आगे क्या हो सकता है?
- अगर प्रमाण सामने आते हैं तो इस पर विधिक जांच शुरू हो सकती है।
- राज्य निर्वाचन आयोग या उच्च न्यायालय की निगरानी-संस्था इस मामले को देखने पर मजबूर हो सकती है।
- राजनीतिक दल इस विषय को चुनाव-रणनीति का हिस्सा बनाएँगे, जिससे चुनाव प्रचार और बूथ-कार्य अधिक तनावपूर्ण हो सकता है।
महाराष्ट्र में ‘निगरानी का आरोप’ एक चिंताजनक संकेत है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में संवाद-स्वतंत्रता और गोपनीयता को लेकर प्रश्न उठ रहे हैं। स्थानीय चुनाव के समय ऐसा आरोप-प्रस्ताव न सिर्फ राजनीतिक धरती को असर करता है, बल्कि जनता के बीच चुनाव की निष्पक्षता व भरोसे को भी प्रभावित कर सकता है। समय आने पर यह स्पष्ट होगा कि यह सिर्फ राजनीतिक रट लग रही है या इसके पीछे तथ्य-आधारित मामला है।
