नई दिल्ली : आज के समय में नेपाल के हिंसा के आग में जल रहा है जगह जगह आगज़नी और विरोध देखने को मिल रहा है आपको बता दें की इसी बीच में PM ओली और कई नेताओं ने इस्तीफ़ा दिया हो सकता है इसी बीच एक नाम सुशीला कार्की का नाम अगले PM के लिए काफ़ी चर्चे में हैं आपको बता दें की सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice) रह चुकी है और उनके कार्य को देख कर लगता है की उन्होंने इतिहास में एक नया अध्याय लिखा है। ऐसा माना जाता है उनका जीवन संघर्ष, साहस और ईमानदारी का प्रतीक रहा है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
सुशीला कार्की का जन्म 7 जून 1952 को नेपाल के मोरंग जिले के बिराटनगर में हुआ था। वे एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार से थीं। बचपन से ही उनमें पढ़ाई के प्रति गहरी रुचि थी। परिवार ने भी उन्हें आगे बढ़ने का पूरा सहयोग दिया।
शिक्षा
- उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नेपाल में ही पूरी की।
- आगे चलकर उन्होंने राजनीति विज्ञान और इतिहास में स्नातकोत्तर किया।
- बाद में उन्होंने कानून (Law) की पढ़ाई की और वकालत के क्षेत्र में कदम रखा।
- पढ़ाई के समय ही वे मेधावी छात्रा के रूप में जानी जाती थीं।
न्यायिक जीवन की शुरुआत
सुशीला कार्की ने अपनी वकालत की शुरुआत एक सामान्य वकील के रूप में की।
- उनके काम में ईमानदारी और मेहनत साफ झलकती थी।
- धीरे-धीरे उनकी पहचान एक सक्षम और निडर वकील के रूप में बनी।
- बाद में वे नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश नियुक्त हुईं।
नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश
- 13 अप्रैल 2016 को उन्हें नेपाल के सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश बनाया गया।
- यह पद पाने वाली वे नेपाल की पहली महिला थीं।
- इस पद पर रहते हुए उन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए।
- वे भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ कड़े रुख के लिए जानी गईं।
प्रमुख योगदान
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखा।
- भ्रष्टाचार विरोधी मामलों में कठोर फैसले दिए।
- महिला अधिकारों और लैंगिक समानता की आवाज़ बुलंद की।
- आम जनता में न्यायपालिका की विश्वसनीयता को मजबूत किया।
विवाद और चुनौतियाँ
मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद सुशीला कार्की को राजनीतिक दबावों और विरोध का सामना करना पड़ा।
- संसद में उनके खिलाफ महाभियोग (Impeachment Motion) भी लाया गया, लेकिन जनदबाव के कारण वह वापस लेना पड़ा।
- इससे यह स्पष्ट हुआ कि वे राजनीतिक दबाव में झुकने वाली नहीं हैं।
सेवानिवृत्ति
- उन्होंने 7 जून 2017 को सेवानिवृत्ति ली।
- रिटायरमेंट के बाद भी वे लेखक और समाजसेवी के रूप में सक्रिय हैं।
- उन्होंने आत्मकथा भी लिखी है जिसमें अपने जीवन संघर्ष और न्यायपालिका के अनुभवों का विस्तार से वर्णन किया है।
