सुलतानपुर (उत्तर प्रदेश): जिले में पिछले दस माह के दौरान 7,464 कुत्ता काटने के मामले दर्ज किए गए हैं, जो आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक को चिन्हित करते हैं। इस अवधि में न सिर्फ स्वास्थ्य-खर्च बढ़ा है बल्कि आम नागरिकों में डर और असुरक्षा की भावना भी गहरी हुई है।
प्रमुख बिंदु
- यह आंकड़ा दर्शाता है कि आवारा कुत्तों की संख्या और उन पर नियंत्रण की कमी दोनों समस्या बढ़ा रही हैं।
- चिकित्सकीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो काटे गए व्यक्तियों को तत्काल एंटी-रेबीज टीका एवं घाव की सफाई की आवश्यकता होती है — लेकिंन कई मामलों में ऐसा समय पर नहीं हो पा रहा।
- नगरपालिका एवं पशु-पशुपालन विभाग द्वारा जो बधियाकरण (नसबंदी) और वैक्सीनेशन अभियान चलाए गए हैं, उनमें संसाधनों, बजट एवं कर्मियों की कमी सामने आ रही है।
- इस तरह की परिस्थितियाँ सिर्फ सुलतानपुर तक सीमित नहीं हैं — राज्य के अन्य जिलों एवं अन्य राज्यों में भी आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने के विस्तृत मामले सामने आए हैं।
विश्लेषण
- आवारा कुत्तों की समस्या मानव-स्वास्थ्य, सड़क-सुरक्षा और शहरी व्यवस्था तीनों मोर्चों पर गंभीर बन गई है। बच्चों, वृद्धों और पैदल आने-जाने वालों के लिए जोखिम विशेष रूप से बढ़ गया है।
- जब स्वास्थ्य-विभाग को लगातार काटने के मामले मिलते हैं, तो घाव की देखभाल, टीकाकरण एवं अस्पताल-प्रवेश की तैयारियों का भार बढ़ जाता है। यदि कटाई समय से नहीं होती, तो रैबीज जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा भी उच्च होता है।
- सामाजिक-प्रशासनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो समस्या केवल “कुत्तों को पकड़ो/हटा दो” भर नहीं है — बल्कि इसके पीछे भोजन-उपलब्धता, पशु नियंत्रण नीति, नसबंदी-शेल्टर होम्स, सड़क-पर ट्रैफिक व पैदल सुरक्षित पारगमन जैसी जटिलताएँ हैं।
- इस तरह के बढ़ते मामलों से यह संकेत मिलता है कि शहरी/ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में आवारा कुत्तों का नियंत्रण एक चुनौती बन रहा है — और यह कि मौजूदा प्रणालियों में सुधार की स्पष्ट आवश्यकता है।
सुलतानपुर में 10 महीनों में 7,464 कुत्ता काटने के मामले इस बात का “चेतावनी संकेत” हैं कि आवारा कुत्तों की समस्या सिर्फ असहज नहीं, बल्कि खतरनाक स्तर पर पहुँच चुकी है। यदि समय रहते संघ-संस्थाएँ, प्रशासन एवं नागरिक मिलकर सक्रियता न बढ़ाएँ, तो आने वाले समय में और गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।
इसलिए, अब जरूरत है —
- व्यापक नसबंदी (ABC) और वैक्सीनेशन अभियान की,
- शेल्टर होम एवं पशु-क्लीयरेंस टीमों की,
- सड़क-सुरक्षा व सार्वजनिक जागरूकता की, और
- मामलों की त्वरित चिकित्सा एवं मनोवैज्ञानिक सहायता की।
