New Delhi – पाकिस्तान के सेना प्रमुख Asim Munir ने हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के फ़्लोरिडा में एक ब्लैक-टाई कार्यक्रम के दौरान अत्यंत तीखे भाषा में भारत-खिलाफ़ धमकीपूर्ण बयान दिए। उन्होंने कहा: “हम एक परमाणु राष्ट्र हैं। अगर हमें लगे कि हम नीचे जाने वाले हैं — तो हम दुनिया का आधा हिस्सा अपने साथ ले जाएंगे।”
साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि यदि भारत ने सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को “निलंबित” किया या इंफ्रास्ट्रक्चर बनाकर पाकिस्तान-के जल स्रोतों को प्रभावित किया, तो पाकिस्तानी मिसाइलों द्वारा भारतीय बाँधों पर हमला हो सकता है, विशेषकर उन्होंने भारत के उद्योग-धन जैसे जामनगर रिफायनरी का नाम लिया।
भारत का रुख़
भारत सरकार ने इसे “परमाणु धमकीबाजी” (nuclear sabre-rattling) करार दिया, और इसे तालिबानीकरण और गैर-राजनैतिक हस्तियों द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा निर्णयों की प्रक्रिया में शामिल होने की चेतावनी के रूप में देखा।
पाकिस्तानी परमाणु क्षमता का ताज़ा आकलन
पाकिस्तान के पास अनुमानित ~170 परमाणु वारहेड्स हैं, और वह SHAHEEN-3 मिसाइल (लगभग 2,750 किमी रेंज) और ABABEEL (मिरव-सक्षम) जैसे प्रसार को बढ़ाने वाले प्रणालियों पर काम कर रहा है।
पाकिस्तान ने “नो फर्स्ट यूज़” (No First Use) नीति स्पष्ट रूप से नहीं अपनाई है और उसे सामान्यत: भारत-के “अस्तित्व-धमकी” (existential threat) के संदर्भ में देखता है।
भारत-पाकिस्तान के बीच “ऑपरेशन सिंदूर” का उल्लेख
पाकिस्तान के बयान में “ऑपरेशन सिंदूर” का ज़िक्र किया गया है — यह भारत द्वारा अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले के बाद चलाया गया एक सैन्य अभियान माना जाता है। इसके चलते भारत-पाक सीमा पर तथा जम्मू-कश्मीर में स्थिति और तनावपूर्ण हो गया है, जिसमें ड्रोन, मिसाइल हमलों और विमान कार्रवाई समेत गतिविधियाँ शामिल रही हैं।
आर्थिक एवं जल स्रोतों पर हमला की धमकी
Munir ने विशेष रूप से भारतीय आर्थिक परिसम्पत्तियों को उल्लेख किया — जैसे भारत की जामनगर रिफायनरी — तथा यह आशंका जताई कि पाकिस्तान जल स्रोतों की रक्षा में सक्षम है और यदि भारत ने बांध बनाए तो पाकिस्तान “10 मिसाइलों” से हमला कर सकता है।
यह एक संकेत है कि भारत-पाक विवाद अब सिर्फ सीमाई या आतंक-केंद्रित नहीं बल्कि जल-स्रोत, आर्थिक लक्ष्य एवं रणनीतिक इंफ्रास्ट्रक्चर (dams, refineries) तक पहुँच चुका है।
भारत की प्रतिक्रिया
भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह “परमाणु धमकीबाजी पाकिस्तान की ट्रेडमार्क रणनीति” है और साथ ही यह “एक मित्र तीसरे देश की जमीन से” दिए गए बयानों के लिए खेद व्यक्त किया। भारत ने यह स्पष्ट किया है कि वह परमाणु ब्लैकमेल (nuclear blackmail) को स्वीकार नहीं करेगा और अपनी सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएगा।
इन बिंदुओं को समझिए।
क्षेत्रीय स्थिरता हेतु जोखिम — दोनों देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं। ऐसे में इस तरह की धमकी और स्थिति बिगड़ने की संभावना संवेदनशील है।
नई रणनीतिक दिशा — पहले पाकिस्तान मुख्यतः सीमापार आतंकी हमलों और सीमाई घुसपैठ पर निर्भर था; अब आर्थिक लक्ष्यों, जल-स्रोतों व रणनीतिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर सीधे निशाना लगाने की चेतावनी मिल रही है।
अमेरिका व वैश्विक संदर्भ — Munir ने यह बयान अमेरिका की मिट्टी से दिया, जिससे इस बात को भी संकेत माना गया कि पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व वैश्विक मंच का उपयोग कर रहा है।
नियंत्रण एवं आदेश-संरचना (Command & Control)
विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तान का परमाणु युद्धाभ्यास, सैन्य व राजनीतिक नियंत्रण, तथा आतंक-संगठनों से सम्बन्ध इसकी विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं। यदि सेना प्रमुख इस प्रकार की सार्वजनिक धमकी दें, तो यह यह प्रश्न उठाता है कि असल में किस-के नियंत्रण में निर्णय-प्रक्रिया है।
गलती का जोखिम (Mis-calculation)
भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ती सैन्य गतिविधियाँ, युद्ध-घोल संकेत, जल-स्रोत विवाद तथा परमाणु क्षमता को देखते हुए एक छोटी सी गलती भी व्यापक संघर्ष में बदल सकती है।
वैश्विक प्रभाव
अमेरिका सहित वैश्विक शक्ति-समूह इस क्षेत्रीय तनाव को गंभीरता से देख रहे हैं। पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व द्वारा अमेरिका में यह बयान देना, वैश्विक सुरक्षा पर निगाह बढ़ा देता है।
जल-स्रोत एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सुरक्षा
भारत को जल-स्रोत, बांध एवं आर्थिक इंफ्रास्ट्रक्चर की रक्षा-रणनीति और सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी क्योंकि इन्हें अब ‘क्षेत्रीय युद्ध’ की धुरी माना जा रहा है।
Asim Munir के बयान ने यह स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान अब न सिर्फ सीमाई जंग या आतंक-सहयोग पर निर्भर है, बल्कि रणनीतिक स्तर पर जल-स्रोतों, आर्थिक परिसम्पत्तियों और पारंपरिक रक्षा-धाराओं को पार कर एक नए रूप में तैयार हो रहा है। भारत-पाकिस्तान समीकरण में यह बदलाव जोखिम भरा है क्योंकि दोनों परमाणु शक्तियाँ हैं और युद्ध की स्थिति का दायरा व्यापक हो सकता है।
भारत के लिए यह समय है कि वह न सिर्फ अपनी सैन्य क्षमता को सुदृढ़ करे, बल्कि जल-स्रोतों, इंफ्रास्ट्रक्चर एवं रणनीतिक औद्योगिक परिसम्पत्तियों की रक्षा-प्रणाली को भी मज़बूत बनाये। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस तरह की धमकीबाजी को उजागर करना और वैश्विक समर्थन जुटाना भी आवश्यक होगा।
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