Bihar chunav में वोटरों को लुभाने के लिए तमाम कोशिश की जा रही है ऐसे में RJD नेता और महगठबँधन के CM उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने कहा है कि हर महिला के खाते में 30,000 आएँगे।

जानिए पूरा मामला
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनज़र, महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने मंगलवार को पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बड़ा एलान किया। उन्होंने कहा कि यदि उनकी सरकार बनेगी, तो महिलाओं, सरकारी कर्मचारियों और किसानों के लिए अनेक सामाजिक व कल्याण संबंधी योजनाएँ तत्काल लागू की जाएँगी।
प्रमुख घोषणाएँ
उनकी घोषणाओं में मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
- महिलाओं के लिए “माई-बहिन योजना” के तहत एक साल की पूरी राशि अर्थात ₹30,000 उनकी बैंक खातों में एकमुश्त भेजी जाएगी।
- सरकारी कर्मचारियों की पोस्टिंग उनके गृह जिले (या उससे निकटतम) में होगी — कहा गया कि गृह जिले से अधिकतम 70 किलोमीटर की दूरी तय होगी ताकि कर्मचारियों को परिवार से दूर न रहना पड़े।
- किसानों के लिए सिंचाई हेतु बिजली निःशुल्क दी जाएगी — वर्तमान में प्रति यूनिट शुल्क (लगभग 55 पैसे) लिया जाता है, लेकिन नई सरकार बनने पर यह खर्च पूरी तरह सरकार वहन करेगी।
- राज्य के व्यापार मंडलों के 8,463 पैक्स को जनप्रतिनिधि का दर्जा दिया जाएगा और धान-गेहूँ आदि प्रमुख फसलों के लिए समर्थन मूल्य में वृद्धि की जाएगी।
राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषण
यह घोषणाएँ चुनावी रणनीति की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि:
- महिलाओं को सीधे आर्थिक रूप से लाभ देने वाला यह वादा उन्हें वोट बैंक के रूप में जोड़ने का संकेत देता है।
- सरकारी कर्मचारियों की पोस्टिंग में सुधार की बात यह दिखाती है कि महागठबंधन अपना बेस मजबूत करना चाहता है — कर्मचारियों के परिवारिक जीवन व काम का संतुलन बनाना एक संवेदनशील मुद्दा है।
- किसानों और छोटे व्यापारियों को लाभ पहुँचाने के वादे से ग्रामीण एवं अर्ध-शहरी मतदाताओं को आकर्षित किया जाना है, जो बिहार चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
- ये घोषणाएँ यह दिखाती हैं कि महागठबंधन “हर वर्ग के लिए कुछ” देने की कोशिश कर रहा है — इस तरह की व्यापक चुनौतियों को लेकर उनकी रणनीति साफ नजर आती है।
तेजस्वी यादव के ये वादे — महिलाओं को आर्थिक मदद, कर्मचारियों की बेहतर पोस्टिंग, किसानों को सहज बिजली और व्यापारियों को प्रत्यक्ष समर्थन — बड़े पैमाने पर प्रत्यक्ष लाभ वाले लग रहे हैं। हालांकि, वादों का क्रियान्वयन और वित्त-साधन उपलब्धता इस बात को तय करेंगे कि क्या ये वादे सिर्फ चुनावी भाषण बनकर रह जाएंगे या गंभीर रूप से लागू होंगे। आने वाले समय में यह देखना होगा कि ये घोषणाएँ जनता में कितनी स्वीकार्य हैं और अन्य राजनीतिक दलों द्वारा इन पर कितनी प्रतिक्रिया आती है।

