नई दिल्ली — अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा यह दावा किए जाने के बाद कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देगा, भारत ने स्पष्ट जवाब दिया है। विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा है कि ऐसा कोई वादा नहीं किया गया था और भारत अपनी ऊर्जा नीति में नागरिकों के हित को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।
MEA का बयान सीधे वैल की मानसिकता को चुनौती देता है — “राष्ट्रहित की रक्षा सबसे पहले” — भारत ने इस टिप्पणी के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि तेल खरीद संबंधी नीतियाँ देश की आर्थिक और रणनीतिक जरूरतों पर आधारित होती हैं, न कि किसी दूसरे देश की मांग पर।

ट्रम्प के दावे और स्थिति
ट्रम्प ने एक सार्वजनिक बयान में कहा कि उन्हें जानकारी मिली है कि मोदी ने उनसे यह आश्वासन दिया कि भारत रूस से क्रूड ऑयल की खरीद बंद कर देगा। उन्होंने कहा कि यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
लेकिन भारत ने इन दावों को सिरे से खारिज किया है। MEA के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत एक बड़ा तेल और गैस आयातक है और इसकी ऊर्जा नीति “स्थिर कीमतों और सुरक्षित आपूर्ति” पर आधारित होती है। उन्होंने कहा कि यदि कोई वादा किया भी गया, तो वह किसी अधिकारिक रूप में नहीं था।
भारत की ऊर्जा नीति की चुनौतियाँ
भारत की ऊर्जा जरूरतों का लगभग 80–90 % हिस्सा आयात पर निर्भर है। ऐसे में अचानक रूस से तेल की खरीद बंद करना आसान नहीं होगा — यह दीर्घकालिक अनुबंधों, आपूर्ति श्रृंखला और ऊर्जा बजट पर गहरा असर डाल सकता है।
MEA के अनुसार, भारत की प्राथमिकता है कि ऊर्जा उपलब्ध रहे और वह किफायती हो — इसलिए विकल्पों को विविध करना और संतुलन बनाना आवश्यक है। इस नीति में उत्कृष्ट सौदे करना और ग्लोबल बाज़ार की स्थितियों के अनुसार फैसले लेना शामिल है।
वैश्विक और राजनयिक प्रभाव
यह विवाद भारत-अमेरिका संबंधों को चुनौती देता है। अगर भारत रूस से तेल खरीद बंद कर दे, तो अमेरिका-रूस के बीच ऊर्जा दबाव कम हो सकता है, लेकिन भारत को अन्य स्रोतों पर निर्भर होना पड़ेगा।
विश्लेषक कह रहे हैं कि यह कदम भारत को रणनीतिक मोर्चे पर दबाव में ला सकता है — विशेष रूप से उन देशों से जो भारत को ऊर्जा व आर्थिक मोर्चे पर प्रभावित करना चाहते हैं।
