पटना (Babajinews): बिहार के मोकामा क्षेत्र में राजनीति-और अपराध की घटना में घिरे पूर्व विधायक अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद मृतक स्वतंत्र समाज आंदोलन से जुड़े नेता दुलारचंद यादव के पोते ने एक अनूठा और दृढ़ संदेश दिया है। उन्होंने घोषणा की है कि उनके परिवार द्वारा मृतक के पारंपरिक ब्रह्मभोज अनुष्ठान तब तक नहीं किया जाएगा जब तक मामले में नामजद सभी पांच आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया जाता और उन्हें सजा-ए-मौत नहीं दी जाती।
पोर्टल रिपोर्ट के मुताबिक, यादव का कहना है कि “मेरे दादा को मारने वाले सभी लोग खुला घूम रहे हैं, मुझे डर है कि मेरे परिवार पर भी खतरा है।” उन्होंने यह भी कहा कि अभी उनकी कोई राजनीतिक आकांक्षा नहीं है — उन्हें केवल न्याय चाहिए।
पुलिस ने इस हत्या मामले में अनंत सिंह सहित कई अन्य लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है। यादव के पोते ने शिकायत दी थी कि उनके दादा की हत्या में प्रशासन-सहायता संभवतः शामिल थी।
विश्लेषण
यह घटना सिर्फ एक हत्या-मामला नहीं है बल्कि बिहार की राजनीति, अपराध और सामाजिक चेतना के संगम को दिखाती है। ब्रह्मभोज जैसे पारंपरिक अनुष्ठान को न्याय के प्रतीक के रूप में बदलना यह संदेश देता है कि सामाजिक-संस्कारों को सिर्फ इतरा देने वाला नहीं बल्कि परिणाम-तक ले जाने वाला आंदोलन भी बनाया जा सकता है।
साथ ही यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि अपराध-राज, राजनीतिक संरक्षण और न्याय की गति में कितना अन्तर है। जब परिवार अनुष्ठान रोकेगा क्योंकि “दोषी पकड़े नहीं गए”, तब यह सरकार और प्रशासन दोनों के लिए एक चैलेंज बन जाता है — क्या सिर्फ गिरफ्तारी ही पर्याप्त है या सजा-ए-मौत जैसी कठोर न्याय प्रक्रिया आवश्यक है ताकि सामाजिक भरोसा बना रहे।
दुलारचंद यादव के पोते का यह प्रण व्यक्तिगत त्रासदी से निकलकर सामाजिक आंदोलन का रूप ले चुका है। यह दर्शाता है कि न्याय-प्रक्रिया में देरी या अपूर्णता सामाजिक प्रतिक्रिया को जन-आंदोलन में बदल सकती है। इस तरह की स्थिति में प्रशासन-प्रशासनिक तंत्र पर सिर्फ कानूनी दबाव नहीं बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व का बोझ भी बढ़ जाता है।

