New Delhi –आरव मिश्रा (16 वर्षीय, कक्षा 11वीं का छात्र) ने कानपुर में अपने घर में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली।
पुलिस की जांच में यह सामने आया कि आरव पिछले लगभग एक वर्ष से सिज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित था, और इस दौरान उसने अपनी परेशानी के लक्षण व इलाज संबंधी जानकारी इंटरनेट पर लगभग 60-65 बार सर्च की थी।
परिवार ने बताया कि उसने इस बीमारी को किसी को खुलकर नहीं बताया था, दिन-प्रतिदिन दबाव में जूझ रहा था।
इस खबर से जुड़े मुख्य बिंदु
- मानसिक बीमारी का खतरा
– आरव को सिज़ोफ्रेनिया था, जो एक गंभीर मानसिक स्थिति है — इसमें व्यक्ति के विचार, भावनाएँ, अनुभव अस्थिर हो सकते हैं।
– उसने अपने लक्षणों व इलाज के बारे में इंटरनेट पर 60-65 बार जानकारी खोजना शुरू कर दिया था। इस बात से यह संकेत मिलता है कि वह सक्रिय रूप से अपनी समस्या समझने की कोशिश कर रहा था, लेकिन शायद पर्याप्त समर्थन न मिला। - इंटरनेट और सेल्फ-हेल्प का सीमित असर
– इंटरनेट पर जानकारी खोजना अच्छी शुरुआत हो सकती है, लेकिन मानसिक बीमारी जैसे मामलों में पेशेवर चिकित्सकीय सहायता, मानसिक स्वास्थ्य सलाह, परिवार-सहायता बहुत महत्वपूर्ण होती है।
– आरव ने खुद जानकारी खोजने की कोशिश की, लेकिन शायद उसे यह एहसास नहीं हुआ कि सिर्फ जानकारी पर्याप्त नहीं होती — उपचार, सलाह-मशवरा, चिकित्सक से संवाद जरूरी है। - परिवार एवं सामाजिक समर्थन की कमी
– खबर में बताया गया कि परिवार सहित स्कूल-संबंधी लोग इस परेशानी को जानते नहीं थे। यह संकेत हो सकता है कि लड़कों में/स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर चर्चा नहीं होती।
– यदि परिवार, शिक्षक या मित्र-परिवार को समय पर पता चलता या संवाद खुलता तो मदद मिल सकती थी। - स्कूल-परिस्थितियों का दबाव
– खबर में बताया गया है कि आरव ने 10वीं में 97 % अंक प्राप्त किए थे और स्विमिंग में भी स्टेट-लेवल का प्रतिभागी था।
– इस तरह की उपलब्धियाँ अक्सर बहुत उच्च अपेक्षाएँ, स्वयं से प्रतिस्पर्धा, सामाजिक/परिवारिक दबाव लेकर आती हैं। जिससे यदि मानसिक समस्या भी हो, तो दबाव और बढ़ सकता है। - सुसाइड-नोट व संकेत
– पुलिस को आरव की जेब में कागज़ मिला, जिसमें लिखा हुआ था कि “चहरे कहते हैं कि खुद जान दे दो या माँ-बाप व बहन को मार दो”।
– यह बहुत स्पष्ट संकेत थे कि स्थिति अत्यंत गंभीर हो चुकी थी और समय पर हस्तक्षेप नहीं हुआ।
यह घटना हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाती है:
- मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेना चाहिए — विशेषकर किशोरावस्था में।
- सिर्फ जानकारी खोजना पर्याप्त नहीं है; वैध चिकित्सकीय सलाह, परिवार-समर्थन, विद्यालय-सहयोग, मनोचिकित्सक-मदद बेहद आवश्यक है।
- बच्चों-किशोरों की उपलब्धियों के साथ उनकी मानसिक स्थिति, दबाव, भावनात्मक हालत भी देखना चाहिए।
- समाज, स्कूल व परिवार में ऐसी खुली चर्चा होनी चाहिए कि यदि कोई बच्चा “मैं ठीक नहीं हूँ” कहे, तो उसे तुरंत मदद मिले।
