यह एक संवेदनशील और जटिल प्रश्न है, और इसका उत्तर भविष्य की अनिश्चितताओं पर निर्भर करता है। पाकिस्तान के दो भागों में बंटने की संभावना के बारे में चर्चा करते समय हमें कई पहलुओं को ध्यान में रखना होता है — राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, और भूगोलिक।
1. ऐतिहासिक संदर्भ
पाकिस्तान पहले ही एक बार 1971 में बंट चुका है, जब पूर्वी पाकिस्तान अलग होकर बांग्लादेश बना। उस विभाजन के पीछे क्षेत्रीय असमानता, भाषाई विवाद, राजनीतिक अधिकारों की कमी और सैन्य दमन जैसी कई वजहें थीं।
2. वर्तमान चुनौतियाँ
पाकिस्तान में आज भी कुछ ऐसे क्षेत्र और समुदाय हैं जो खुद को हाशिए पर महसूस करते हैं:
- बलूचिस्तान: बलूच अलगाववादी आंदोलन दशकों से चल रहा है। कुछ समूह स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं।
- सिंध: यहां भी “सिंधुदेश” जैसे आंदोलन चल रहे हैं, हालांकि वो उतने प्रभावशाली नहीं हैं।
- पश्तून इलाका (Khyber Pakhtunkhwa): कुछ पश्तून नेता पाकिस्तान सरकार की नीतियों को लेकर असंतोष जताते हैं, लेकिन व्यापक अलगाव की मांग कमज़ोर है।
- गिलगित-बाल्टिस्तान और PoK: इन क्षेत्रों को लेकर राजनीतिक अस्पष्टता बनी हुई है, और भारत-पाक विवाद का हिस्सा हैं।
3. आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता
पाकिस्तान इस समय गंभीर आर्थिक संकट से गुजर रहा है, और सेना तथा नागरिक सरकार के बीच खींचतान भी जारी रहती है। यदि ये अस्थिरता और बढ़ती है तो यह आंतरिक अशांति को जन्म दे सकती है, जो अलगाववादी आंदोलनों को बल दे सकती है।
4. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
पाकिस्तान की भू-राजनीतिक स्थिति (भारत, चीन, अफगानिस्तान, ईरान के बीच) ऐसी है कि वैश्विक शक्तियाँ भी वहां किसी बड़े विघटन को रोकने की कोशिश करेंगी, क्योंकि इससे पूरे दक्षिण एशिया में अस्थिरता आ सकती है।
निष्कर्ष:
संभावना है, लेकिन निश्चितता नहीं।
निकट भविष्य में पाकिस्तान का दोबारा बंटना संभव नहीं दिखता, लेकिन अगर आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता, क्षेत्रीय असमानता और मानवाधिकार उल्लंघन लगातार बढ़ते रहे, तो लंबे समय में आंतरिक टकराव या विभाजन की जमीन तैयार हो सकती है।