श्रीनगर / जम्मू-कश्मीर (babajinews): उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में केंद्र सरकार को कड़ी चेतावनी दी है, कहा है कि उनके हाथों में राज्य के सुरक्षा प्रबंधन का नियंत्रण नहीं है और राज्य-दर्जा (Statehood) को बहाल करने में अनावश्यक देरी हो रही है। उन्होंने यह टिप्पणी उस पृष्ठभूमि में की है जब राज्य के दर्जे को लेकर राजनीतिक दबाव और चुनौती दोनों बढ़ रहे हैं।
मुख्य बिंदु
- उमर अब्दुल्ला ने कहा कि “मेरे शासन के समय कभी पर्यटक-हमले नहीं हुए थे” और अब जो हालात बने हैं वे इसलिए कि सुरक्षा का नियंत्रण उनके हाथ में नहीं है।
- उन्होंने केंद्र सरकार से पूछा कि राज्य-दर्जा देने में “सही वक्त” क्या है — यदि वादा किया गया था तो क्यों कहा जा रहा है ‘थोड़ा इंतज़ार करो’?
- उन्होंने सरकारी कर्मचारियों को बिना कारण हटाए जाने, निवासियों के प्रदर्शन-विरोध और अन्य प्रशासनिक निर्णयों पर असंतोष जताया — कहा कि उन्हें यह जानने का अधिकार है कि “सही वक्त” कब आएगा ताकि तैयारी हो सके।

राजनीतिक-संवैधानिक पृष्ठभूमि
जम्मू और कश्मीर को 2019 में विशेष दर्जा और पुराने राज्य-संवैधानिक स्वरूप से बदलकर संघ-शासित प्रदेश बनाया गया था, जिसके बाद राज्य-दर्जा बहाली की मांग लगातार उठ रही है। (Wikipedia) उमर अब्दुल्ला का कहना है कि चुनावी वादों, लोकल आबद्धताओं और संवैधानिक अपेक्षाओं के बीच यह मामला अब प्रतीक्षा का बन गया है — “कब तक इंतज़ार?” उनकी प्रतिवादी टिप्पणी इसे दर्शाती है।
सामाजिक-प्रभाव एवं चुनौतियाँ
- सुरक्षा नियंत्रण की बात उठने से यह सवाल खड़ा हुआ है कि राज्य सरकार की भूमिका कितनी रही है और केंद्र का हस्तक्षेप या निगरानी किस तरह हो रही है — जो नीति-निर्माण एवं व्यवहारिक क्रियान्वयन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।
- राज्य-दर्जा जैसे संवेदनशील राजनीतिक मुद्दे पर देरी से आम जनता में विश्वासघात-भावना उत्पन्न हो सकती है — उमर के शब्दों में “दायित्व निभाने का अधिकार हमें देना होगा।”
- प्रशासनिक निर्णय जैसे कर्मचारियों की अचानक अवधि समाप्ति, निवासियों का विरोध, कानून-व्यवस्था की स्थिति — ये सब मिलकर राज्य में स्थिरता व विकास के माहौल को प्रभावित कर सकते हैं। यदि राज्य-दर्जा के ढाँचे में देरी होती है तो यह निवेश, पर्यटन, स्थानीय प्रशासन की जवाबदेही सब पर असर डाल सकता है।
उमर अब्दुल्ला के तेवर ने स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर में राज्य-दर्जा सिर्फ एक संवैधानिक व राजनीतिक विषय नहीं रहा — वह अब सुरक्षा, प्रशासनिक स्वायत्तता, जनता का भरोसा और संवैधानिक न्याय से जुड़ा मामला है। उन्होंने केंद्र को यह संदेश दिया है कि “हम काम करना जानते हैं, हमारी जिम्मेदारियाँ समझते हैं — पर हमें वह अधिकार और स्पष्टता चाहिए जो वादा किया गया था।”
इस पृष्ठभूमि में, यदि केंद्र-राज्य संवाद सुदृढ़ होता है, दिशा स्पष्ट होती है और समयबद्धता दिखती है, तो जम्मू-कश्मीर का भविष्य विकास-उन्मुख हो सकता है। अन्यथा, यह सिर्फ प्रतीक्षा-मोड में रह जाना भारतीय संघ-संविधानिक व्यवस्था व वहाँ के नागरिकों के लिए चुनौती बन सकता है।
