Babajinews – 29 अक्टूबर 2025 • दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने हाल ही में एक याचिका को खारिज कर दिया जिसमें अभियुक्त ने फेसबुक पर लिखे अपने पोस्ट को आधार बनाकर आपराधिक मुक़दमा रद्द करने की माँग की थी। यह पोस्ट बाबरी मस्जिद के विषय से जुड़ा था और इसमें कहा गया था कि “बाबरी मस्जिद भी एक दिन बनेगी” — जिसे कुछ लोगों ने संवेदनशील और प्रतिबंधनीय माना।
कोर्ट का तर्क
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागचि की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत हर मामले में अग्रिम रूप से हस्तक्षेप नहीं करेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि आपराधिक जांच और ट्रायल की प्रक्रिया अपने स्तर पर चलनी चाहिए और यदि वहाँ किसी तरह की अनियमितता मिलेगी तो सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। इसीलिए याचि खारिज की गई और ट्रायल कोर्ट को अपना काम करने दिया गया।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि सोशल मीडिया पर दी गई अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के दायरे में आती है और उक्त पोस्ट में न तो भड़काने वाली भाषा थी और न ही सुस्पष्ट विरोधाभासी इरादा दिखा। उनकी बहस यह भी थी कि सोशल मीडिया पर की हुई टिप्पणियाँ निजी राय मानी जानी चाहिए, न कि आपराधिक आरोपों की वजह।
विरोध और संवेदनशीलता
दूसरी ओर, अभियोजन पक्ष और शिकायत दर्ज करने वालों ने कहा कि देश में धार्मिक मामलों पर टिप्पणियाँ सामाजिक तनाव भड़का सकती हैं और विशेषकर ऐसे मामलों में जहां इतिहास संवेदनशील रहा हो, पुलिस और न्यायिक हस्तक्षेप ज़रूरी है। कोर्ट ने कहा कि इस संवेदनशीलता को देखते हुए मामले की मजदूरी और विवरण ट्रायल कोर्ट में ठीक तरह देखे जाएँ।
कानूनी निहितार्थ
यह मामला डिजिटल युग में अभिव्यक्ति की सीमा, सोशल मीडिया पर अभियोग और न्यायिक हस्तक्षेप के सिद्धांतों को सामने लाता है। शीर्ष अदालत का रुख यह दर्शाता है कि वह आपराधिक प्रक्रिया का सम्मान करती है और केवल गंभीर नियमभंग या गलत प्रवृत्ति दिखने पर ही अग्रिम हस्तक्षेप करेगी।
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