भारत और पाकिस्तान के बीच एशिया कप के ग्रुप-स्टेज मुकाबले ने सिर्फ क्रिकेट के दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि भावनात्मक और राजनीतिक स्तर पर भी भारी चर्चा छेड़ दी है। रविवार को दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में भारत ने पाकिस्तान को सात विकेट से हरा कर शानदार प्रदर्शन किया। लेकिन इस जीत की कहानी सिर्फ रन, विकेट और रणनीति तक सीमित नहीं रही — इस मैच ने हाथ मिलाने से इंकार और मैच के बाद पाकिस्तानी टीम को ‘बॉयकॉट’ करने जैसी घटनाएँ भी सामने लाईं, जो इस बीच किसी पोलिटिकल संदेश से कम नहीं थीं।
मैच की झलक
पाकिस्तान ने पहले बल्लेबाजी करते हुए निर्धारित 20 ओवरों में 9 विकेट के नुकसान पर सिर्फ 127 रन बनाए। इस लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत ने 15.5 ओवरों में सिर्फ 3 विकेट गंवाकर जीत दर्ज की। सूर्या (सूर्यकुमार यादव) और शिवम दुबे जैसे बल्लेबाजों ने ऐसा दबदबा बनाया कि लक्ष्य चिन्हित होते ही टीम ने सहज तरीके से मैच अपने नाम कर लिया।
हाथ न मिलाना: शुरुआत से ही बयानबाजी
टॉस से पहले आम तौर पर कप्तान एक-दूसरे से हाथ मिलाते हैं, फिर मैच के बाद खिलाड़ी और स्टाफ आपस में नम्रता दिखाते हैं। लेकिन इस मैच में दूसरा हुआ। टॉस के समय, भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने पाकिस्तान के कप्तान सलमान आगा से हाथ नहीं मिलाया। यह फैसला पूर्व-निर्धारित प्रतीत होता है।
न सिर्फ यह, भारतीय कमेंटेटर रवि शास्त्री ने भी टॉस के दौरान सलमान आगा से हाथ नहीं मिलाया। मैच खत्म होने के बाद, जब पाकिस्तानी टीम हाथ बढ़ाने के लिए तैयार थी, भारतीय टीम ‘हैंडशेक’ नहीं करने गई।
जीत और संदेश: टीम इंडिया की प्रतिक्रिया
वहीं जीत के बाद भी कुछ अलग ही सन्नाटा छा गया। भारतीय टीम ने पाकिस्तान टीम को मैदान में हाथ नहीं मिलाया, और विरोध का यह इशारा सार्वजनिक था। पार्टी नहीं हुई, कोई ‘sportsman’s gesture’ नहीं दिखा। यह कदम दर्शाता है कि खेल मैदान से परे भावनाएँ कितनी तीव्र हो गई हैं।
सूर्यकुमार यादव ने अपनी कप्तानी में मिली इस जीत को भारतीय सशस्त्र बलों को समर्पित किया। यह समर्पण इस बात का प्रतीक है कि टीम ने सिर्फ जीत नहीं चाही, बल्कि एक संदेश देना चाहा कि उन्हें पता है देश में भावनाएँ किस ओर झुकी हैं।
राजनीतिक तनाव की भूमिका: पहलगाम हमला और “ऑपरेशन सिंदूर”
इस पूरे मसले की शुरुआत है पहलगाम हमले से — एक आतंकी घटना जिसने भारत में गहरी प्रतिक्रिया और आक्रोश उत्पन्न किया। इस घटना ने सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों को जन्म दिया, जिसमें कुछ लोगों ने पाकिस्तान के खिलाफ कठोर रुख अपनाया।
“ऑपरेशन सिंदूर” नाम से एक मुहिम की चर्चाएँ हुईं, जिसमें ऐसी उम्मीद जताई गई कि भारत-पाकिस्तान के मुकाबले में भारतीय टीम आक्रामक और दृढ़ रुख अपनाए। इस पृष्ठभूमि में इस तरह का बॉयकॉट — हाथ न मिलाना, कम आत्मीयता दिखाना — एक प्रतीक बन गया है।
भारतीय टीम और मीडिया की तैयारी
मैच से एक दिन पहले भारत टीम प्रबंधन ने खिलाड़ियों को सोशल मीडिया पर विरोधी माहौल और पाकिस्तानी टीम के साथ व्यवहार को लेकर बताया कि उन्हें किस तरह पेश आना है। ये संकेत दिए गए थे कि किस तरह की प्रतिक्रिया अपेक्षित है, कौन सी कार्रवाई की जाएगी।
मैच की पूर्वाभ्यास सत्रों में भी देखा गया कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ बातचीत और वो गर्मजोशी जो पहले दिखती थी — वह इस बार नहीं नजर आई। मीडिया बॉक्स में दोनों देशों के पत्रकारों के बीच बातचीत में कमी रही।
पारंपरिक सौहार्द्र की कमी: क्या बदला है?
अतीत में भारत-पाकिस्तान मैचों में बहुत कुछ ऐसा हुआ है जो क्रिकेट के स्वरूप से परे गया — बॉलर्स और बल्लेबाजों के बीच टी शर्ट्स का आदान-प्रदान, जन्मदिनों या निजी मामलों पर सरप्राइज गिफ्ट्स, मुस्कराहटें और शिष्टाचार का आदान-प्रदान।
लेकिन इस बार कुछ अलग है — ऐसा माहौल नहीं है जहाँ सामाजिक या मानवीय संवेदना सामने आए। बदलाव संकेत देता है कि राजनीतिक तनाव और आंतरिक घटनाएँ अब खेल को बिना प्रभावित किए नहीं रहने दे रही। खिलाड़ियों का व्यवहार, टीम मैनेजमेंट की रणनीति, और मीडिया की कवरेज — ये सब इस बदलाव का हिस्सा हैं।
प्रतिक्रियाएँ और संभावित प्रभाव
यह “बॉयकॉट” व्यवहार सिर्फ इस मैच तक सीमित नहीं रहे, बल्कि इसकी व्यापक आलोचना और समर्थन दोनों हुई है। समर्थक इसे देशभक्ति की अभिव्यक्ति मानते हैं — यह संदेश कि खेल-भावनाएँ हैं, लेकिन राष्ट्रीय सम्मान से बड़ा कुछ नहीं। आलोचक इस तरह के कदमों को खेल की भावना के खिलाफ कहते हैं — “ये ‘फेयरप्ले’ नहीं, ये दर्शकनामा है।”
अगर आईसीसी या एशिया कप आयोजकों की दृष्टि से देखें, तो हाथ न मिलाना या विरोध-भाव दिखाना नियमों के उल्लंघन नहीं है, लेकिन इसकी छवि, खेल की आत्मा और भविष्य के मुकाबलों पर पड़ने वाले सामाजिक प्रभाव को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
भारत vs पाकिस्तान जैसे मुकाबले सिर्फ खेल नहीं होते — उनमें इतिहास, राजनीतिक तनाव, सामाजिक भावनाएँ और राष्ट्रवादी भावनाएँ एक साथ मिलती हैं। इस मैच में हाथ मिलाने से इनकार, जीत का समर्पण भारतीय सशस्त्र बलों को, और पाकिस्तानी टीम के साथ दूरी बनाए रखना — ये सभी घटनाएँ संकेत करती हैं कि अब खेल और राजनीति एक दूसरे से पूरी तरह अलग नहीं हो सकते।
क्रिकेट प्रेमी चाहे जो कहें, लेकिन इस तरह की घटनाएँ खेल की पारंपरिक खेल भावना, मित्रता और सम्मान की भावना को प्रभावित करती हैं। भविष्य में, ऐसे मुकाबले शायद और जटिल रूप से देखे जाएंगे — जिसमें सिर्फ रन-रेट नहीं, बल्कि भावनात्मक ताना-बाना भी निर्णायक भूमिका निभाएगा।
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