दिवाली की रोशनी जैसे ही खत्म हुई, दिल्ली की हवा में अंधकार फैल गया। पटाखों की गूंज और जश्न के बीच राजधानी की हवा इतनी जहरीली हो गई कि उसने पूरी दुनिया के शहरों को पीछे छोड़ दिया। स्विस ग्रुप IQAir की रिपोर्ट के अनुसार, दिवाली के अगले ही दिन दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 440 से ऊपर पहुंच गया, जिससे यह दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया।
दिल्ली के कई इलाकों में हवा की गुणवत्ता “गंभीर” श्रेणी में पहुंच गई है — यानी ऐसी हवा जिसमें सांस लेना शरीर के लिए हानिकारक है। रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में PM2.5 का स्तर WHO की गाइडलाइन से लगभग 59 गुना ज्यादा दर्ज हुआ।
क्या है दिल्ली की हवा की असली कहानी?
दिवाली से पहले ही दिल्ली-एनसीआर की हवा खराब होने लगी थी। मौसम में ठंडक और कम हवा की गति ने प्रदूषकों को ऊपर उठने नहीं दिया। उस पर पटाखों का धुआं, वाहनों की भारी आवाजाही और पराली जलाने का असर — इन सबने मिलकर राजधानी को गैस चैंबर में बदल दिया।
CPCB (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) के अनुसार, दिल्ली का औसत AQI 350 से ऊपर दर्ज किया गया, जो “बहुत खराब” श्रेणी में आता है। जबकि कुछ जगहों — जैसे आनंद विहार, जहांगीरपुरी और द्वारका — में यह 450 तक पहुंच गया, जो “गंभीर” कैटेगरी है।
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दिवाली का उत्सव या धुएं का कहर?
हर साल की तरह इस साल भी दिवाली पर “ग्रीन क्रैकर” की अपील की गई थी, लेकिन ज़मीन पर इसका असर बहुत सीमित दिखा।
रातभर चली आतिशबाजी ने हवा में हजारों टन सूक्ष्म कण छोड़ दिए। दिल्ली के आसमान में पटाखों से निकलने वाला धुआं और धूल रातभर छाया रहा।
मौसम विभाग (IMD) के मुताबिक, दिवाली की रात हवा की गति बेहद कम (3-4 किमी/घंटा) रही, जिसके कारण धुआं ऊपर नहीं जा सका और पूरे शहर पर छा गया।
PM2.5 क्या है और यह कितना खतरनाक है?
PM2.5 यानी “Particulate Matter” ऐसे सूक्ष्म कण हैं जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है। ये कण इतने छोटे होते हैं कि फेफड़ों में जाकर सीधे रक्त प्रवाह में घुल सकते हैं।
डॉक्टरों के अनुसार, PM2.5 का स्तर बढ़ने से सांस की बीमारियां, अस्थमा, एलर्जी, हृदय रोग और यहां तक कि कैंसर जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए यह हवा बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।
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दिल्ली की ‘स्मॉग डोम’ में फंसी सांसें
मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय दिल्ली “स्मॉग डोम” (Smog Dome) में फंस गई है। यानी ठंडी हवा और ऊंचाई पर गर्म परत (temperature inversion) मिलकर एक ऐसा गुंबद बना देती है जिसमें प्रदूषण फंस जाता है और बाहर नहीं निकल पाता।
इस स्थिति में हवा साफ होने में कई दिन लग जाते हैं — जब तक कि हवा की गति तेज न हो जाए या बारिश न हो जाए।
मुख्य कारणों पर नजर:
- पटाखों का धुआं – दिवाली की रात में लाखों टन रासायनिक गैसें और सूक्ष्म कण हवा में घुल गए।
- वाहनों का उत्सर्जन – दिल्ली में प्रतिदिन 1 करोड़ से ज्यादा वाहन चलते हैं, जो नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड छोड़ते हैं।
- पराली जलाना – पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा फसल अवशेष जलाने से आने वाला धुआं दिल्ली तक पहुंचता है।
- निर्माण-धूल – बड़ी संख्या में निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल भी वायु गुणवत्ता बिगाड़ती है।
- मौसम की स्थिति – धीमी हवाएं, नमी और ठंडक प्रदूषण को नीचे ही फंसा देती हैं।
दिल्ली के कई अस्पतालों में दिवाली के बाद सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन और एलर्जी के मामलों में 30-40% तक बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
डॉक्टर सलाह दे रहे हैं कि लोग बाहर कम निकलें, N95 मास्क पहनें और एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें।
AIIMS के फेफड़ा रोग विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि लंबे समय तक इस तरह की हवा में रहने से फेफड़ों की कार्यक्षमता 10–15% तक घट सकती है।
सरकार और विशेषज्ञों की राय:
दिल्ली सरकार ने “ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP)” के तहत निर्माण कार्यों पर रोक, स्कूलों में छुट्टी और वाहनों के वैकल्पिक उपयोग की योजना शुरू की है।
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ये अस्थायी उपाय हैं। असली बदलाव तभी संभव है जब पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक सामूहिक नीति लागू की जाए।
पर्यावरणविद् सुनीता नारायण कहती हैं —
“जब तक पराली जलाने, डीजल वाहनों और पटाखों पर सख्त नियंत्रण नहीं होगा, दिल्ली हर सर्दी में दम तोड़ती रहेगी।”
दिवाली रोशनी और खुशियों का त्योहार है, लेकिन अगर इस उत्सव की कीमत हवा में जहर बनकर चुकानी पड़े तो यह जश्न नहीं, त्रासदी बन जाता है।
दिल्ली फिलहाल दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन चुका है — और यह केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि चेतावनी है।अगर अब भी हम नहीं संभले, तो आने वाले वर्षों में यह “प्रदूषण की राजधानी” स्थायी पहचान बन सकती है।
हमें यह तय करना होगा कि अगली दिवाली पर हम रोशनी जलाएं या धुआं फैलाएं।
