बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नामांकन अंतिम दिन में जमुई के सिकंदरा़ क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार राहुल राणा सिर्फ 3 मिनट देर से पहुंचने के कारण नामांकन से वंचित रह गए। यह घटना पार्टी एवं चुनावी माहौल दोनों के लिए अहम संकेत है।
जमुई जिले के सिकंदरा़ विधानसभा क्षेत्र में सोमवार (नामांकन की अंतिम दिन) को आयोजित नामांकन प्रक्रिया के दौरान, आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवार राहुल राणा को नामांकन दाखिल करने से केवल तीन मिनट देर पहुँचने के कारण निरस्त कर दिया गया।
बता दें कि नामांकन की समय-सीमा 3 :00 बजे तक निर्धारित थी। राहुल राणा 2:57 बजे सड़क पर दौड़ते-भागते पहुंचे थे, लेकिन जब तक वे निर्वाचन कार्यालय के कक्ष तक पहुँचे, वहाँ प्रक्रिया बंद हो चुकी थी। इस कारण आम आदमी पार्टी सिकंदरा़ सीट से पूरी तरह चुनावी दौड़ से बाहर हो गई।
राजनीतिक और प्रक्रियात्मक दृष्टिकोण
प्रक्रियात्मक पहलू
नामांकन अंतिम समय सीमा का उल्लंघन आम नहीं होता — चुनावी नियमों में इसे बहुत सख्ती से देखा जाता है। इस प्रकार की ‘समय पर न पहुँचने’ की वजह से प्रत्याशी निरस्त हो जाना बताता है कि अधिकारी नियम के अनुपालन में तटस्थ रहे।
हालांकि, तीन मिनट देर होना शायद मामूली-सी गलती लग सकती है, पर प्रक्रिया के हिसाब से यह अनुपालन का मामला बन गया।
इस घटना से यह सवाल उठता है कि क्या प्रत्याशी/पार्टी ने पर्याप्त तैयारी नहीं की थी, या स्थानीय स्तर पर कुछ व्यवधान रहा — किसी भी तरह इसका असर नियम-प्रक्रिया तथा राजनीतिक छवि दोनों पर पड़ सकता है।
राजनीतिक पहलू
यह घटना अरविंद केजरीवाल की पार्टी AAP-के लिए महत्वपूर्ण संकेत है — विशेष तौर पर बिहार जैसे राज्य में जहां AAP नए तौर पर अपनी पकड़ बनाने की कोशिश में है। नामांकन से वंचित होना पार्टी की शुरुआत के लिये प्रतिकूल सन्देश बन सकता है।
विपक्ष एवं अन्य पार्टियों के लिए यह अवसर बन सकता है कि वे “तैयारी और निष्पादन” की कमी का आरोप AAP पर लगाएं।
इस सीट से AAP-की उम्मीदवारी वापस होने से स्थानीय उम्मीदवारों के बीच राजनीति का माप-दंड बदल सकता है — अन्य पार्टियों को बढ़त मिल सकती है।
🔍 क्या यह बड़ी समस्या है?
शब्द-शः देखा जाए तो “3 मिनट देर होना” मामूली लग सकता है। पर चुनावी परिपेक्ष्य में यह निम्नलिखित कारणों से गंभीर हो जाता है, यह बताता है कि प्रत्याशी-पार्टी समय-प्रबंधन या लॉजिस्टिक्स में पीछे रही।जनता एवं समर्थकों के बीच यह छवि जा सकती है कि पार्टी “तैयार नहीं थी” या “स्थानीय स्तर पर मजबूत नहीं है”। नियम-अनुपालन का मामला है: यदि नियम समय-सीमा के आधार पर लागू हो रहे हैं, तो यह न्याय-संकट का सवाल भी बन सकता है — क्या समय सीमा में “कुछ देर” को लचीलापन मिलना चाहिए था?
इस घटना ने न सिर्फ AAP की चुनौती को उजागर किया है, बल्कि यह चुनावी प्रक्रिया-प्रबंधन की महत्वता को भी रेखांकित करती है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में ऐसे संकेत महत्वपूर्ण हैं — क्योंकि यह राज्यांकन, प्रत्याशी चयन, समय-प्रबंधन और स्थानीय संगठन की दक्षता का परीक्षण है।
AAP को अब यह दिखाना होगा कि यह घटना एक कमजोरी-रूप नहीं बल्कि सीख-रूप बन सकती है — और भविष्य में बेहतर तैयारी के साथ-साथ अपनी स्थिति को मजबूत कर सकती है।
राजनीतिक प्रतीक के रूप में भी इसका उपयोग हो सकता है — बड़े नेता अड़ियलता या लापरवाही के ‘चिन्ह’ माने जा सकते हैं।
