Patna 9 Oct 2025 – महागठबंधन में अंदरूनी मतभेद गहराए, कांग्रेस की सीटों पर दावेदारी से बढ़ी राजनीति की गर्माहट, वहीं तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा बनाने पर सहमति नहीं बन पा रही है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राज्य की राजनीति का तापमान तेजी से बढ़ता जा रहा है। महागठबंधन के भीतर इस समय सबसे बड़ी चुनौती सीट शेयरिंग (Seat Sharing) और मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर बनी हुई है। कांग्रेस पार्टी जहां अपनी राजनीतिक ज़मीन मजबूत करने के लिए अधिक सीटों की मांग कर रही है, वहीं राष्ट्रीय जनता दल (RJD) अपने पारंपरिक गढ़ को किसी भी हाल में छोड़ने के मूड में नहीं है। इन सबके बीच तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री चेहरा घोषित करने पर भी अभी तक सभी दलों के बीच आम सहमति नहीं बन पाई है।

सीट शेयरिंग पर फँसा मामला
आपको बता दें की मिली जानकारी के मुताबिक़ Congress और RJD के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत के कई दौर हो चुके हैं, लेकिन अब तक कोई बेहतर नतीजा नहीं मिला है और इसपर कांग्रेस का कहना है कि पिछले चुनाव में उसे कम सीटें मिलने के कारण उसके कई मजबूत उम्मीदवार चुनाव लड़ नहीं पाए थे जिससे पार्टी को नुक़सान हुआ था। ऐसा माना जा रहा है की पार्टी इस बार कम से कम 70 से 80 सीटों पर दावेदारी जता रही है। वहीं राजद का मानना है कि महागठबंधन में उसका वोट शेयर और संगठन दोनों ही सबसे मजबूत हैं, इसलिए सीटों की संख्या वही तय करेगा।
कांग्रेस के राज्य प्रभारी और कई वरिष्ठ नेताओं ने यह साफ किया है कि अब वे “सिर्फ जूनियर पार्टनर” की भूमिका में नहीं रहेंगे। पार्टी नेतृत्व चाहता है कि कांग्रेस की स्थिति बिहार में यूपीए जमाने जैसी हो, जहां वह निर्णायक भूमिका निभा सके।
तेजस्वी यादव के चेहरे पर सहमति नहीं
यहाँ जहां सीटों का मामला है तो वह CM के चेहरे पर भी शंका है इस पूरे मामले में सीटों के अलावा दूसरा बड़ा मुद्दा है मुख्यमंत्री पद का चेहरा महागठबंधन के भीतर राजद, कांग्रेस, वाम दल और कुछ क्षेत्रीय पार्टियाँ शामिल हैं। RJD का कहना है की तेजस्वी यादव ही गठबंधन के सीएम चेहरा होंगे।
लेकिन कांग्रेस इस पर खुलकर हामी नहीं भर रही। पार्टी के कई वरिष्ठ नेता मानते हैं कि पहले सीट शेयरिंग पर सहमति हो, फिर चेहरा तय किया जाए। वहीं, कांग्रेस हाईकमान ने अभी तक इस विषय पर कोई औपचारिक घोषणा नहीं की है।
कांग्रेस का तर्क है कि गठबंधन में “चेहरा” तय करने से पहले साझा न्यूनतम कार्यक्रम (Common Minimum Programme) बनाया जाए, ताकि जनता को पता चले कि महागठबंधन सत्ता में आने पर क्या करने वाला है।

महागठबंधन में अंदरूनी मतभेद
बिहार में विपक्षी गठबंधन को इस समय एकजुटता की ज़रूरत है, लेकिन अंदरूनी मतभेद लगातार बढ़ते जा रहे हैं। सीट बंटवारे की प्रक्रिया में कई स्थानीय नेता असंतोष जता चुके हैं। वाम दलों का कहना है कि उन्हें पिछली बार से कम सीटें नहीं मिलनी चाहिए, जबकि कांग्रेस अपनी “राष्ट्रीय पहचान” के नाम पर अधिक सीटें चाहती है।
राजद नेता दावा कर रहे हैं कि जनता अब तेजस्वी यादव को राज्य का भविष्य मानती है और कांग्रेस को इस हकीकत को स्वीकार कर लेना चाहिए। वहीं, कांग्रेस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा—
> “हम गठबंधन को कमजोर नहीं करना चाहते, लेकिन हमें बराबरी का सम्मान मिलना चाहिए।”
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एनडीए की रणनीति और महागठबंधन की चिंता
दूसरी ओर, एनडीए (NDA) यानी भाजपा, जदयू और अन्य सहयोगी दलों ने चुनावी तैयारी तेज कर दी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त रैलियों का प्लान तैयार हो रहा है। एनडीए की रणनीति साफ है— विपक्षी मतों में दरार डालो और महागठबंधन को “अस्थिर गठबंधन” के रूप में पेश करो।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर महागठबंधन अपने अंदरूनी मतभेद दूर नहीं कर पाया, तो एनडीए को सीधा लाभ मिलेगा। बिहार की जनता “स्थिर सरकार” चाहती है, और अगर विपक्ष एकजुट नहीं रहा, तो यह मौका सत्तारूढ़ गठबंधन के हाथ में जा सकता है।
कांग्रेस की स्थिति कमजोर लेकिन उम्मीद कायम
बिहार में कांग्रेस की संगठनात्मक स्थिति फिलहाल बहुत मजबूत नहीं है। कई जिलों में पार्टी के पास जमीनी कार्यकर्ता कम हैं। फिर भी कांग्रेस नेतृत्व को उम्मीद है कि युवाओं और महिलाओं के बीच उनकी नीतियाँ असर डालेंगी। पार्टी ने सोशल मीडिया टीम को भी सक्रिय किया है ताकि युवा मतदाताओं तक पहुँच बनाई जा सके।
कांग्रेस अब बिहार में नए चेहरे लाने की रणनीति पर काम कर रही है। पार्टी का लक्ष्य है कि “नया बिहार, नई सोच” के नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरा जाए।
चुनावी समीकरण और संभावनाएँ
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर कांग्रेस और राजद के बीच सीटों पर समय रहते सहमति बन जाती है, और तेजस्वी यादव को गठबंधन का चेहरा स्वीकार कर लिया जाता है, तो महागठबंधन मजबूत स्थिति में आ सकता है।
लेकिन अगर यह विवाद और लंबा खिंच गया, तो बीजेपी और जेडीयू इसका सीधा राजनीतिक लाभ उठा सकती हैं।
बिहार की राजनीति हमेशा से समीकरणों और गठबंधनों के इर्द-गिर्द घूमती रही है। इस बार भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। कांग्रेस और राजद दोनों ही अपनी-अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने में जुटे हैं। अगर दोनों दल एकजुट होकर रणनीति बनाते हैं, तो महागठबंधन के पास जनता के बीच एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरने का मौका है।
लेकिन अगर सीट शेयरिंग और मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर मतभेद जारी रहे, तो बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इसका सीधा असर नतीजों पर पड़ सकता है।
