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14 Nov 2024, Thu

Chhath Puja 2024: जानिए छठ पूजा की शुरुआत कहां से हुई और छठ पूजा इतनी पूजनीय क्यों है।

(Pushpa Chauhan)- छठ पर्व की शुरुआत बिहार के मुंगेर जिला से हुई थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मुंगेर के गंगा तट माता सीता ने सबसे पहला छठ पूजन किया था। इसके बाद से ही बिहार में छठ पूजा की शुरुआत हुई, कहा जाता है कि भगवान राम के साथ वनवास के दौरान सीता माता ने ऐतिहासिक नगरी मुंगेर में छठ पर्व किया था।

छठ पूजा इतनी पूजनीय क्यों है?

छठ पूजा की महिमा बहुत गहरी है, और इसे एक ऐसी पूजा माना जाता है, जो शुद्धता, तप, और आत्मा के उन्नयन की प्रतीक है।

सूर्य देवता की पूजा: छठ पूजा में सूर्य देवता की उपासना की जाती है। सूर्य को जीवन का दाता और सर्वशक्तिमान माना जाता है। सूरज की पूजा से स्वास्थ्य, समृद्धि, और शांति की प्राप्ति होती है।

    संगठित और कठिन साधना: छठ पूजा का आयोजन बहुत कठिन और कठिन तपस्या के रूप में होता है। इसमें उपवास, नृत्य, गीत, और विशेष पूजा विधि होती है। यह एक प्रकार का आत्म-शुद्धिकरण और भक्ति का प्रतीक है, जिसमें भक्त सूर्य देवता के प्रति अपनी श्रद्धा और आस्था दिखाते हैं।

    परिवार की सुख-समृद्धि और संतान सुख: छठ पूजा को संतान सुख प्राप्ति और पारिवारिक समृद्धि के लिए किया जाता है। विशेष रूप से महिलाएँ इस पूजा में संतान सुख की प्राप्ति के लिए उपवास करती हैं और सूर्य देवता से आशीर्वाद मांगती हैं।

    समाज और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता: छठ पूजा में जल के महत्व को भी माना जाता है। पूजा के दौरान नदी, तालाब, या अन्य जल स्रोतों के किनारे सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। यह जल संरक्षण और पर्यावरण की रक्षा के प्रति जागरूकता का प्रतीक है।

    आध्यात्मिक शुद्धता: छठ पूजा के दौरान भक्तों को शुद्धता बनाए रखने के लिए कई नियमों का पालन करना होता है, जैसे उपवास, स्वच्छता, और मन की एकाग्रता। यह पूजा आत्मा को शुद्ध करने और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में एक कदम है।

    छठ पूजा को महाभारत और रामायण से भी जोड़ा जाता है। एक मत के अनुसार, भगवान श्रीराम ने भी सीता माता के साथ छठ पूजा की थी, ताकि वे सूर्य देवता से आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। छठ पूजा एक अत्यंत प्राचीन और पूजनीय पर्व है, जो न केवल सूर्य देवता की आराधना का अवसर प्रदान करता है, बल्कि परिवार की सुख-समृद्धि, संतान सुख, और आत्मिक शुद्धता की प्राप्ति के लिए भी की जाती है। यह पूजा न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति भी गहरी संवेदनशीलता का प्रतीक है।

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