लखनऊ: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने संगठनात्मक फेरबदल का बड़ा कदम उठाया है। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री और सात बार के सांसद पंकज चौधरी उत्तर प्रदेश भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। शनिवार को उन्होंने लखनऊ में अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दिया है, और जब किसी अन्य उम्मीदवार ने नामांकन नहीं दिया तो वह निर्विरोध रूप से इस पद के लिए आगे बढ़े हैं।
पंकज चौधरी का नामांकन रविवार को औपचारिक रूप से भाजपा राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में अंतिम रूप दिया जाएगा, जहां पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में उनकी घोषणा की जाएगी। इस कार्यक्रम में केंद्र के वरिष्ठ नेताओं के साथ भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के सदस्य भी भाग लेंगे।

राजनीतिक पृष्ठभूमि और संगठनात्मक गणित
पंकज चौधरी का राजनीतिक सफर पार्षद के पद से शुरू हुआ और वे गोरखपुर के डिप्टी मेयर, फिर 1991 से लगातार सांसद के रूप में चुने जाते रहे हैं। उन्होंने लंबे समय से भाजपा के लिए अपनी सेवाएँ दी हैं और अब पार्टी ने उन्हें उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी है। उनकी राजनीतिक पहचान कुर्मी समुदाय से है, जो ओबीसी वोट बैंक में एक निर्णायक और महत्वपूर्ण वर्ग माना जाता है।
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी उनके नाम का समर्थन किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनके प्रस्तावक बने, जबकि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी भी उनके समर्थन में थे। इससे यह संकेत मिलता है कि पार्टी केंद्रीय नेतृत्व और राज्य नेतृत्व के बीच तालमेल से निर्णय ले रही है।
PDA समीकरण को मात देने की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार भाजपा ने पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर विपक्ष के PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) समीकरण को चुनौती देने की रणनीति तैयार की है। 2024 के लोकसभा चुनाव में PDA के समीकरण ने समाजवादी पार्टी को कुछ क्षेत्रों में बढ़त दी थी, खासकर कुर्मी वोटों के ध्रुवीकरण से। भाजपा अब इसी समीकरण पर अपने पक्ष में प्रभाव बढ़ाने के लिए मजबूत नेतृत्व को आगे लाना चाहती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि कुर्मी समुदाय और ओबीसी वोट बैंक पर पकड़ मजबूत करने के लिए यह रणनीति अहम है, क्योंकि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यही समीकरण निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
कर्नाटक, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के बाद अब उत्तर प्रदेश में भी भाजपा ने संगठनात्मक बदलाव कर दिया है। पंकज चौधरी का प्रदेश अध्यक्ष बनना भाजपा की सामाजिक संतुलन और चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है। पार्टी की नजर 2027 के विधानसभा चुनाव पर भी है, और यह बदलाव भाजपा को अगले चुनावों में बेहतर संगठनात्मक ताकत देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।
