Bihar (Patna) – बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण से पहले भागलपुर तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में राजनीतिक बाज़ी बहुत सख़्त है। यहाँ की सीट पर लंबे समय से Indian National Congress (कांग्रेस) अपना प्रभाव बनाए हुए है, लेकिन इस बार Bharatiya Janata Party (भाजपा) द्वारा चुनौती के स्वर तीव्र हो गए हैं। (The Times of India)
कांग्रेस को इस क्षेत्र में अपनी जड़ें मजबूत मानी जाती हैं, लेकिन भाजपा इस “कठिन गढ़” को जितने के लिए दृढ़ है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भागलपुर की वर्तमान लड़ाई—मुख्य रूप से कांग्रेस विरुद्ध भाजपा—को अब एक बाइपोलर (दो-ध्रुवीय) संघर्ष के रूप में देखा जा रहा है। (The Times of India)
कारण और पृष्ठभूमि
भागलपुर विधानसभा क्षेत्र में अतीत में कांग्रेस तथा भाजपा-वंशजों का दबदबा रहा है। वर्तमान में कांग्रेस के प्रत्याशी हैं अजीत शर्मा, जबकि भाजपा की ओर से उतरे हैं रोहित पांडेय। (The Times of India)
कांग्रेस इस बार अपने मुस्लिम-यादव (M–Y) कट्टर वोट बैंक तथा अपने पारंपरिक भुमिहार मतदाताओं का साथ लेकर जीत की कोशिश कर रही है। वहीं भाजपा, राष्ट्रीय नेताओं की सक्रिय समर्थन व भाजपा-दलित-मध्यम वर्ग रणनीति से इस क्षेत्र को जीतने का लक्ष्य रखे है। (The Times of India)
स्थानीय मुद्दे भी इस चुनावी लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं — जैसे कि विक्रमशिला ब्रिज का चार-लेन बनना, भागलपुर रेलवे स्टेशन का उन्नयन, तसर रेशम तथा हैंडलूम उद्योग विकास, वायु सेवा की शुरुआत आदि। (The Times of India)
अभी क्या हो रहा है?
चुनावी माहौल अब चूनावी रैली, राष्ट्रीय नेताओं के दौरे और मत-प्रचार की गहमागहमी से भरा हुआ है। भागलपुर में ११ नवंबर को मतदान होना तय है—और तब तक उम्मीदवारों द्वारा अपनी-अपनी जिज्ञासाएं, वादे तथा चुनौतियाँ लगातार सामने आ रही हैं। (The Times of India)
विश्लेषकों का कहना है कि इस बार भागलपुर में तीन-चार पार्टियों की लड़ाई कम-का-कम दिखती है, बल्कि यह मुख्यतः कांग्रेस व भाजपा के बीच प्रत्यक्ष मुकाबला बनती जा रही है। (The Times of India)
चुनौती कांग्रेस के लिए और भाजपा का जज़्बा
कांग्रेस के लिए यह सीट इसलिए अहम है क्योंकि यह पार्टी यहां अपना “ठोस गढ़” मानती है। यदि इस बार हार होती है, तो यह उनके लिए प्रतीकात्मक कमजोरी का संदेश होगा। भाजपा के लिए इस सीट को जीतना इस बात का संकेत होगा कि वह भागलपुर जैसे क्षेत्र में कांग्रेस की स्थापित स्थिति को चुनौती दे रही है।
कांग्रेस के उम्मीदवार अजीत शर्मा को उम्मीद है कि राष्ट्रीय नेताओं की लोकप्रियता, यादव-मुस्लिम वोट बैंक और स्थानीय विकास मुद्दों का मिश्रण उन्हें एक बार फिर जीत दिला सकता है। भाजपा प्रत्याशी रोहित पांडेय को यह भरोसा है कि भाजपा की राष्ट्रीय लहर व संगठन-शक्ति उन्हें आगे ले जाएगी।
भागलपुर की यह युद्धभूमि राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण बन चुकी है। कांग्रेस को अपनी मजबूत स्थिति को बरकरार रखना है, जबकि भाजपा यह साबित करना चाहती है कि वह अब सिर्फ मुंबई-दिल्ली-बिहार तक सीमित नहीं है, बल्कि कांग्रेस के गढ़ों तक अपनी पकड़ बनाने में सक्षम है।
मतदान के दिन समीप आने के साथ, यह देखना रोचक होगा कि क्या विकास-महत्व वाले स्थानीय मुद्दे भारी पड़ेंगे या राजनीतिक दलों की रणनीतियाँ व वोट-बैंक गतिशीलता निर्णायक साबित होगी। भागलपुर में इस बार की लड़ाई सिर्फ एक विधानसभा सीट का नही, बल्कि समूचे पूर्वी बिहार के राजनीतिक माहौल का प्रतीक बन चुकी है।
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