वॉशिंगटन – संयुक्त राज्य अमेरिका की कांग्रेस में आज एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है जिसमें दोनों प्रमुख दलों के सांसदों ने मिलकर एक प्रस्ताव (प्रस्तावना) प्रस्तुत की है जिसे “द्विपक्षीय” समर्थन प्राप्त है। इस प्रस्ताव में India और United States की ऐतिहासिक व रणनीतिक साझेदारी को विशेष वजनी मान्यता दी गई है।
प्रस्ताव की अगुआई कर रहे हैं डेमोक्रेट सांसद Ami Bera (D-CA) और रिपब्लिकन सांसद Joe Wilson (R-SC), जिन्होंने इस प्रस्ताव में कहा है कि दोनों देशों के बीच रक्षा, प्रौद्योगिकी, व्यापार, आतंकवाद विरोध-सहयोग और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में गहरा सहयोग हमेशा से रहा है।
इस प्रस्ताव में विशेष रूप से यह बात उभरी है कि भारत की भूमिका सिर्फ एक साझीदार के रूप में नहीं बल्कि “क्षेत्रीय स्थिरता”, “आर्थिक वृद्धि” और “एक स्वतंत्र व खुला इंडो-प्रशांत क्षेत्र” सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण है।
पूरे प्रस्ताव को लगभग 24 मूल सह-प्रायोजकों का समर्थन प्राप्त है — जिसमें इंडियन-अमेरिकन सांसदों से लेकर दोनों पक्षों के अन्य सांसद शामिल हैं।
पृष्ठभूमि और क्या कहता है प्रस्ताव
हाल के वर्षों में अमेरिका-भारत संबंधों में धारा-परिवर्तन देखने को मिला है। खासकर रक्षा-तकनीक के क्षेत्र में, भारत को “मेजर रक्षा साझीदार” का दर्जा मिला है तथा दोनों देशों ने 2 + 2 मंत्रिस्तरीय संवाद, नागरिक-नाभिकीय समझौते आदि में भागीदारी बढ़ाई है।
इस प्रस्ताव की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं:
- भारत-अमेरिका साझेदारी को भविष्य के लिए “मूल रणनीतिक स्तंभ” माना गया है।
- अमेरिका तथा भारत को 21वीं सदी की चुनौतियों — जैसे साइबर मिलेनियम, उभरती तकनीक, आतंकवाद-परस्पर सहयोग — का हल साथ मिलकर ढूँढने का आह्वान किया गया है।
- प्रस्ताव में यह स्वीकार किया गया है कि दोनों देशों के लोगों-से-लोगों के संबंध भी गहरे हैं, विशेष रूप से भारतीय-अमेरिकी डायस्पोरा की भूमिका।
संभावित प्रभाव
यह प्रस्ताव प्रतीकात्मक तो है, लेकिन इसके कई व्यावहारिक परिणाम भी हो सकते हैं:
- अमेरिकी कांग्रेस द्वारा एक संयुक्त प्रतिबद्धता दिखाना भारत-अमेरिका संबंधों में भरोसा बढ़ा सकता है।
- रक्षा-और-सुरक्षा सहयोग को कानूनी तथा राजनीतिक दृष्टि से आगे बढ़ाने का मार्ग सरल हो सकता है।
- भारत-अमेरिका व्यापार-और-प्रौद्योगिकी भागीदारी को नए अवसर मिल सकते हैं, विशेष रूप से इंडो-प्रशांत रणनीति के तहत।
- भारतीय-अमेरिकी समुदाय को कांग्रेस-स्तर पर मान्यता मिलना, उनके राजनीतिक व सामाजिक प्रभाव को बढ़ा सकता है।
चुनौतियाँ व आगे की राह
हालाँकि प्रस्ताव को समर्थन मिला है, लेकिन इसके क्रियान्वयन-पथ में चुनौतियाँ भी हैं:
- भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ व्यापारिक एवं रणनीतिक मतभेद मौजूद हैं — विशेष रूप से रूस से भारत की ऊर्जा एवं रक्षा खरीदारी को लेकर।
- सुरक्षा-सम्बंधित सहभागिताएँ संवेदनशील होती हैं और उन्हें दोनों देशों की विदेश-नीति व घरेलू राजनीति से संतुलित रखना होगा।
- प्रस्ताव तो शुरुआत है; असली मापदंड यह होगा कि इस साझेदारी के लिए किस तरह की नए समझौते, सहयोग-मॉड्यूल्स, और मुंबई-सदृश घटनाओं में वास्तविक प्रशासकीय-साझेदारी सामने आती है।
यह अमेरिका-कांग्रेस द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव सिर्फ एक कागजी घोषणा नहीं बल्कि व्यापक राजनीतिक संदर्भ में दो लोकतंत्रों का साझा भविष्य-दृष्टि है। समय बताएगा कि इस प्रस्ताव को किस गति से पीछे ‘नए समझौते’ में बदला जाता है और भारत-अमेरिका की साझेदारी रणनीतिक से क्रियात्मक स्तर पर बढ़ती है।

