पटना/नई दिल्ली – बिहार की आगामी सरकार गठन प्रक्रिया के ठीक पहले ही National Democratic Alliance (एनडीए) में एक नया राजनीतिक भूचाल देखने को मिला है। जद (यू) के वरिष्ठ नेता संजय झा और ललन सिंह अचानक दिल्ली पहुँचे, जिसने गठबंधन के भीतर सीट-वाद और शक्ति-वितरण को लेकर चल रही चर्चाओं में न sadece हलचल मचाई है, बल्कि गहरे मतभेद की झलक भी दी है।
इन नेताओं के चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली रवाना होने की जानकारी सार्वजनिक होते ही राजनीतिक गलियारे में अनुमान लगा गए कि कहीं जद (यू) उपमुख्यमंत्री पद, स्पीकर की कुर्सी या मंत्री-सुची को लेकर उसे ‘बराबरी का फॉर्मूला’ ना चाहिए हो रहा हो। जद (यू) का तर्क है कि गठबंधन में सिर्फ संख्या-का हक नहीं, बल्कि मान-का हक भी उन्हें मिला होना चाहिए।
दिल्ली में उनकी मुलाकात केंद्रीय गृह मंत्री से हुई – सूत्रों के अनुसार इस बैठक में नई सरकार में मंत्रीपदों का बंटवारा, स्पीकर-पद तथा उपमुख्यमंत्री पद सहित अन्य संवेदनशील विषयों पर चर्चा हुई।
घटना का राजनीतिक-महत्व उस समय और बढ़ गया जब जद (यू) ने स्पष्ट किया कि विधान परिषद के सभापति का पद पहले से ही भाजपा के पास है, इसलिए विधानसभा के अध्यक्ष का पद उन्हें मिलना चाहिए। भाजपा में इस पर असंतोष है क्योंकि उनका कहना है कि मुख्यमंत्री पद उन्हें मिले हुए है — ऐसे में स्पीकर पद स्वाभाविक रूप से भाजपा का होना चाहिए।
इसके पीछे एक और बड़ी पृष्ठभूमि है — जद (यू) का ‘मंत्रियों-वितरण’ फॉर्मूला: छह विधायकों पर एक मंत्री। इस फ़ॉर्मूले के तहत भाजपा-जद (यू) दोनों को लगभग १५-१५ मंत्री मिल सकते हैं, लेकिन स्पीकर व उप-मुख्यमंत्री जैसे पदों को लेकर विरोध उभर रहा है।
विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की बैठक-और-घनघोर-चर्चा केवल पद-विवाद नहीं है बल्कि नई सरकार के स्वर-निर्धारण की दिशा का संकेत है — यह दिखाती है कि जद (यू) अब सिर्फ गठबंधन की ‘सहयोगी’ नहीं बल्कि निर्णय-प्रक्रिया में बराबर भागीदार बनने की मांग ठोक रही है।
फिलहाल, 20 नवंबर की शपथ-ग्रहण तिथि तय है और गठबंधन के भीतर चल रही ये तनातनी स्थिति दर्शाती है कि ‘मंच-में अनाउंसमेंट’ से पहले ‘बैठक-के-बाहर बातचीत’ चल रही है।


