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SIR : केरल के इस ज़िले में कुछ लोगों ने किया फाँसी लगाकर प्रदर्शन, जानिए इसकी वजह

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Kerala : केरल के Kannur जिले के Aneesh George नामक एक बूथ-लेवल अधिकारी की रविवार को अपने घर में संदिग्ध आत्महत्या ने पूरे राज्य में एक राजनीतिक और प्रशासनिक संकट खड़ा कर दिया है। परिवार व स्थानीय सूत्रों का कहना है कि उनकी मौत का कारण इस Special Intensive Revision (SIR) नामक चुनावी प्रक्रिया-कार्यभार से उत्पन्न अत्यधिक दबाव था।

इसी घटना के बाद सोमवार को राज्य भर में बांठ (बॉयकॉट) किया गया, जिसमें बूथ-लेवल अधिकारी (BLOs) अपनी ड्यूटी से अनुपस्थित रहे और विरोध मार्च निकाले गए। इस विरोध को Action Council of State Government Employees and Teachers तथा Teachers Service Organisation सहित कई कर्मचारी संघों ने संयोजित किया।

घटना का पूरा क्रम

16 नवंबर 2025 को, PAYYANNUR विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत ETTUKUDUKKA पंचायत में घटनास्थल पाए गए BLO Aneesh George को उनके घर में फांसी पर लटका पाया गया। परिवार का दावा है कि उन्होंने पिछले कुछ दिनों से अति कार्यदबाव, देर रात तक लगातार कार्य, और SIR प्रक्रिया में तत्काल फॉर्म वितरण व सत्यापन के निर्देश से बहुत तनाव झेला था।

इसके तुरंत बाद राज्य के BLOs ने 17 नवंबर को काम से बहिष्कार करने का निर्णय लिया। विरोध की रूपरेखा की गई थी: राजधानी Thiruvananthapuram में मुख्य चुनाव अधिकारी कार्यालय के सामने मार्च और प्रत्येक जिले के कलेक्टोरेट समक्ष प्रदर्शन। संगठनों ने आरोप लगाया कि BLOs पर “मानव क्षमता से बाहर” कार्यभार डाल दिया गया है—जहाँ प्रत्येक बूथ को 750 से 1450 मतदाता तक फॉर्म वितरित व सत्यापित करने का बोझ था।

प्रशासनिक जवाब व राजनीतिक हलचल

इस मामले में प्रशासन ने कहा है कि अभी तक SIR-कार्यभार और BLO की मौत के बीच प्रत्यक्ष कारण-सम्बंध साबित नहीं हुआ है। जिला अधिकारी ने बताया है कि Aneesh का कार्यप्रगति सामान्य आँकड़ों के अनुरूप थी।

लेकिन राजनीतिक दलों ने इसे बहुत बड़े मसले के रूप में उठाया है। Indian National Congress ने कहा है कि CPM कार्यकर्ताओं द्वारा BLO को धमकाया गया था, जो तनाव का एक कारक बना। विपक्ष ने SIR प्रक्रिया को चुनावों के बाद स्थगित करने की मांग की है।

भविष्य की चुनौतियाँ

इस घटना ने कई महत्वपूर्ण सवाल उठाए हैं:

केरल में हुई इस मौत ने यह संकेत दिया है कि चुनाव-प्रक्रियाओं में शामिल सबसे निचले स्तर के अधिकारी भी प्रणालीगत दबाव और जोखिम का सामना करते हैं। जब ऐसे अधिकारी कार्यभार के बोझ तले दब जाते हैं और उन्हें उचित समर्थन नहीं मिलता, तो परिणाम मात्र प्रशासनिक-घटना नहीं बल्कि मानव-दुःख बन जाती है। अब यह देखने की बात होगी कि प्रशासन, चुनाव आयोग और राज्य सरकार इस घटना से क्या सीख लेती है, और भविष्य में ऐसे हालात पुनरावृत्ति न हों इसके लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।

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