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बागेश्वर धाम की “सनातन हिन्दू एकता पदयात्रा” – एक विश्लेषण

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(babajinews) – मध्य प्रदेश के छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के नेतृत्व में ७ नवंबर २०२५ से एक विशेष पदयात्रा की शुरुआत हुई है, जिसका शीर्षक है “सनातन हिन्दू एकता पदयात्रा”। यह यात्रा दिल्ली-कात्यायनी मंदिर से शुरू होकर वृंदावन तक चलने वाली है, जिसमें सामाजिक समरसता, धार्मिक चेतना और हिन्दू एकता का संदेश देने की योजना है

पृष्ठभूमि एवं उद्देश्य
• पदयात्रा की शुरुआत दिल्ली के छतरपुर स्थित कात्यायनी शक्ति पीठ से हुई।
• यह यात्रा ७ नवंबर से १६ नवंबर तक चलेगी और दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के कई ग्राम-पंचायतों एवं कस्बों से होकर गुजरेगी।
• इसमें उद्देश्य के तहत प्रमुख बिंदु हैं: हिन्दू एकता का संदेश प्रसारित करना, सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना, जात-पात एवं संघर्ष की मानसिकता से ऊपर उठना।
• पदयात्रा का स्वरूप वेद-परम्परा, राष्ट्र-भावना और भक्त-मूलक कार्यक्रमों से युक्त है — जैसे कि धर्म ध्वज ले जाना, राष्ट्रगान व हनुमान चालीसा पाठ, पुष्पवर्षा-स्वागत आदि।

भूमिका और सहभागी
• इस यात्रा में शामिल हैं साधु-संत, राजनेता, समाजसेवी एवं विभिन्न क्षेत्र-से आये लोग। उदाहरण के लिए, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, क्रिकेटर शिखर धवन, उमेश यादव एवं रेसलर खली आदि।
• पदयात्रा के पहले दिन हजारों श्रद्धालु पहुँचे; कहीं-कहीं 200 से अधिक स्थानों पर पुष्पवर्षा व स्वागत हुआ।
• आयोजकों द्वारा निर्देश दिया गया कि यह यात्रा “तलवारों की लड़ाई नहीं, विचारों की लड़ाई” है, और इसे शांतिपूर्वक व मर्यादा के साथ चलाया जाए।

चुनौतियाँ तथा संभावित प्रभाव
• चूंकि यह यात्रा बड़े पैमाने पर सामाजिक-धार्मिक चेतना को शब्द देती है, इसलिए इसे राजनीतिक आयाम से पूरी तरह अलग करना कठिन है। “हिन्दू राष्ट्र”, “गौ माता”-जैसे संकल्प राजनीतिक व सांस्कृतिक दोनों रूपों में प्रभावित कर सकते हैं।
• यह भूमिगत रूप से पंथ-संघर्ष, सामाजिक विभाजन को उजागर भी कर सकती है यदि कार्यक्रम को समावेशी रूप में नहीं ले जाया गया।
• दूसरी ओर, यदि सफल हुई — तो ऐसी पदयात्राएँ सामाजिक समरसता को बढ़ावा दे सकती हैं, लोग विविध पृष्ठभूमि से जुड़ सकते हैं, और धार्मिक कट्टरता व विभाजन को चुनौती मिल सकती है।

 

बागेश्वर धाम की यह “सनातन हिन्दू एकता पदयात्रा” भारत के सामाजिक-धार्मिक परिदृश्य में एक आधुनिक-आध्यात्मिक आंदोलन की तरह उभर रही है।
यह यात्रा बताती है कि आज केवल मंदिर-मस्जिद आदि स्थानों पर नहीं, बल्कि सड़कों-चौराहों पर, गाँव-कस्बों तक पहुँचकर, बड़ी संख्या में लोगों को साथ में ले चलने की कोशिश हो रही है। यदि इसे सही दिशा मिले, तो यह भक्ति को जागरण में, समुदाय को संवाद में और विभाजन को एकता में बदलने की नींव बन सकती है।

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