भारत ने इन प्रणालियों की खरीद के लिए अनुरोध किया है — जावलिन मिसाइलों की संख्या लगभग 100 इकाइयाँ तथा एक्सकैलिबर प्रोजेक्टाइल्स लगभग 216 हैं. घोषणा के मुताबिक, अमेरिका की Defense Security Cooperation Agency (DSCA) ने इस प्रस्तावित बिक्री के बारे में अमेरिकी कांग्रेस को नोटिफिकेशन जारी किया है, साथ ही यह बताया गया है कि इस सौदे से भारत की रक्षा-क्षमता मजबूत होगी तथा क्षेत्रीय संतुलन पर “मूलभूत प्रभाव” नहीं डालेगा। तकनीकी दृष्टि से, जावलिन मिसाइलें पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड सिस्टम हैं जिन्हें “फायर-एंड-फॉरगेट” मोड में संचालित किया जा सकता है, जिससे सैनिकों को लक्ष्य मारने के बाद तुरंत सुरक्षित स्थिति में जाना संभव होता है। वहीं, एक्सकैलिबर प्रोजेक्टाइल्स GPS/लीजर गाइडेड आधुनिक तोपखाने गोलें हैं जिनमें सटीकता बहुत अधिक है।
– भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग को नया आयाम मिला है; अमेरिकी सरकार ने भारत को जावलिन एंटी-टैंक मिसाइल प्रणाली और एक्सकैलिबर प्रिसिजन-गाइडेड आर्टिलरी प्रोजेक्टाइल्स की बिक्री को मंजूरी दे दी है।
– इस सौदे की अनुमानित लागत करीब 47.1 मिलियन डॉलर (लगभग) बताई गई है।
– इसके अंतर्गत 100 जावलिन मिसाइलें, 25 कमांड-लॉन्च यूनिट्स (CLU) तथा 216 एक्सकैलिबर राउंड्स शामिल हैं।
– अमेरिकी Defense Security Cooperation Agency (DSCA) ने कांग्रेस को इस प्रस्तावित बिक्री के संबंध में नोटिफिकेशन जारी किया है।
– अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से कहा गया है कि इस बिक्री से क्षेत्रीय सैन्य संतुलन में कोई “नियमित बाधा” नहीं आएगी।
यह रक्षा सौदा कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहला, भारत की सीमाओं व सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए उच्च क्षमता वाली हथियार प्रणालियों का चयन इस बात का संकेत है कि भारत अपनी क्षमताओं को तीव्र गति से सुधारने की दिशा में है। दूसरे, इस तरह की हथियार बिक्री से भारत-अमेरिका के बीच रक्षा साझेदारी को गहरा समर्थन मिलता है।
जावलिन मिसाइल सीधी “फायर एंड फॉरगेट” क्षमता वाली प्रणाली है, जिसे छोटे दल भी संचालित कर सकते हैं। (Wikipedia) वहीं एक्सकैलिबर राउंड्स आधुनिक लक्षित मारक क्षमता वाले आर्टिलरी गोले हैं, जो निशाने को उच्च सटीकता से भेद सकते हैं। (Wikipedia)
इस सौदे की रणनीतिक अहमियत यह है कि भारत को सीमावर्ती और पर्वतीय इलाके जैसे लद्दाख, पूर्वोत्तर आदि में जल्दी-से-जल्दी तैनाती योग्य हल्के, हाई-प्रिसिजन सिस्टम मिलेंगे। साथ ही यह भारत के “आत्म-निर्भर रक्षा उत्पादन” (Make in India) के दृष्टिकोण को भी प्रभावित कर सकती है क्योंकि भविष्य में सह-निर्माण या लाइसेंस-निर्माण के रास्ते खुल सकते हैं।
हालाँकि, यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस तरह के बड़े आयात समझौतों — विशेषकर अमेरिका से — का अर्थ यह नहीं है कि भारत पूरी तरह से अन्य स्रोतों पर निर्भर नहीं रहेगा। विविध स्रोतों में संतुलन बनाए रखना उसके लिए अहम होगा।
इस तरह, यह रक्षा सौदा न केवल भारत की सशस्त्र क्षमताओं में इजाफा करेगा बल्कि रणनीतिक रूप से यह संकेत भी देता है कि भारत अपनी रक्षा नीतियों में सुधार व विविधता की ओर तेजी से अग्रसर है। अमेरिका के साथ यह नया चरण दोनों देशों के लिए लाभप्रद रहेगा। आने वाले समय में इस सौदे का عملی क्रियान्वयन, तैनाती की गति, और इसके पीछे रणनीतिक उद्देश्य पूरी तरह से सामने आएँगे।

