नई दिल्ली – हाल ही में, यूटी चंडीगढ़ में “उपराज्यपाल (Lieutenant Governor)” या “प्रशासक” की नियुक्ति को लेकर एक नया राजनीतिक विवाद उभरकर सामने आ रहा है। Chandigarh पर लंबे समय से चल रहे प्रशासनिक-राजनीतिक तनावों के बीच यह मामला फिर सक्रिय हुआ है।
केंद्र सरकार द्वारा चंडीगढ़ के लिए ऐसे प्रशासक की नियुक्ति करने की तैयारी में होने की खबरें आ रही हैं। इससे पहले यह कोशिश अगस्त 2016 में भी की गई थी, लेकिन तब Prakash Singh Badal एवं Captain Amarinder Singh जैसे नेताओं के विरोध के चलते प्रक्रिया रुक गई थी।
अब पुनः इसी तरह की प्रक्रिया शुरू होने का संकेत मिल रहा है, जिसे लेकर राजनीतिक हल-चल तेज हो चुकी है। क्योंकि चंडीगढ़ पर दोनों राज्य—पंजाब और हरियाणा—दावे करते आए हैं, और अब हिमाचल प्रदेश भी इसमें शामिल होता दिखाई दे रहा है।
मुख्य विषय और चुनौतियाँ
- अतीत का अनुभव
2016 में केंद्र द्वारा चंडीगढ़ के लिए एक केंद्रीय प्रशासक नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी, लेकिन राज्य सरकारों—विशेष रूप से पंजाब में—उस पर मतभेद और विरोध हुआ था।
इस अनुभव के कारण अब पुनः इस प्रक्रिया को सक्रिय करने पर राजनीतिक जोखिम मौजूद है। - प्रशासनिक संरचना में बदलाव
चंडीगढ़ अब तक एक संघ-शासित क्षेत्र (UT) है, जिसमें केंद्र का नियंत्रण अधिक रहा है। लेकिन यदि यहाँ उपराज्यपाल-नियुक्ति होती है, तो यह प्रशासनिक और संवैधानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बदलाव होगा। - राज्य-केंद्र संबंधों का मनोविज्ञान
चंडीगढ़ की स्थिति—जहाँ पंजाब और हरियाणा दोनों को उस पर अधिकार है—एक संवेदनशील राजनीतिक विषय है। इस विवाद में राज्य सरकारों और केंद्र के बीच शक्ति-संतुलन और प्रतिद्वंद्विता उभरती है।
इस तरह की नियुक्ति से राज्य सरकारों की भूमिका और उनकी मांग-दावे पुनः सक्रिय हो सकते हैं। - संकट के संकेत
सूत्रों के अनुसार, चंडीगढ़ में कई मामलों में राज्य-केंद्र के बीच विवाद पहले से व्याप्त हैं—उदाहरण के लिए Panjab University की संस्था-गठन में राज्य-केंद्र संघर्ष।
इन पृष्ठभूमियों में उपराज्यपाल की नियुक्ति का मामला न सिर्फ संवैधानिक सवाल खड़ा करेगा बल्कि राजनीतिक हलचल और आंदोलन की ओर भी ले जा सकता है।
महत्वपूर्ण विश्लेषण
- इस मामले की संवेदनशीलता इसलिए भी है क्योंकि चंडीगढ़ का प्रशासनिक स्वरूप पहले से विवादित रहा है। यदि केंद्र द्वारा उपराज्यपाल-नियुक्ति की प्रक्रिया आगे बढ़ती है, तो यह राज्य-केंद्र संबंधों में नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है।
- इसके साथ ही, राज्य की पक्षगत राजनीति—विशेष रूप से पंजाब में—इस मुद्दे को भू राजनीतिक एवं सांस्कृतिक ढांचे से जोड़कर भगवा सकती है।
- प्रशासनिक परिवर्तन वर्तमान समय में सिर्फ नाम ना रह जाए—बल्कि उसके पीछे यदि राजनीतिक उद्देश्य, अधिकारों का पुनर्वितरण अथवा संसाधनों का नियंत्रण निहित हो, तो संघर्ष गहरा सकता है।
- लोकतांत्रिक व्यवस्था में केन्द्र–राज्य संतुलन न्याय-साधना का एक मर्म है। चंडीगढ़ जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में बदलाव करते समय इस संतुलन की रक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है।
Babajinews टीम का निष्कर्ष
चंडीगढ़ में उपराज्यपाल की नियुक्ति का प्रस्ताव सिर्फ एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संकेत है—जो केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच नए गतिमान संबंधों की दिशा तय करेगा। पिछले अनुभव यह बताते हैं कि बिना विस्तृत संवाद और राज्य-पक्ष की भागीदारी के, ऐसे कदम विवाद के दरवाजे खोल सकते हैं।
यदि यह प्रक्रिया अगले दिनों में सामने आती है, तो यह देखना होगा कि किस तरह से संवैधानिक संरचनाएँ, राज्य-केंद्र संबंध और चंडीगढ़ के नागरिक हित इस बदलाव से प्रभावित होंगे।

