प्रमुख कारण
- समाज-राजनीति-मोड़ में परिवर्तन
बिहार में अब केवल परम्परागत जातिगत गठबंधनों (जैसे यादव-मुस्लिम आजीवन समर्थन) का ही नहीं, बल्कि वोटरों की अपेक्षाओं में “परिणाम” (रोज़गार, विकास, महिलाओं-युवा की भागीदारी) का रोल बढ़ गया है। ‘‘मुस्लिम-यादव’’ कोर वोट बैंक अब अपने फैसलों में परिणाम-प्रमुख बनता दिख रहा है।
RJD-महीने में इस बदलाव को पूरा नहीं कर सकी — वोटरों ने बदलाव नहीं सिर्फ प्रतिनिधित्व चाहा बल्कि कार्य-दिखाई की माँग की। - महिला एवं युवा वोटरों में एनडीए को बढ़त
Janata Dal (United)-led गठबंधन और Bharatiya Janata Party ने महिलाओं और युवाओं की भागीदारी को अपनी रणनीति में बेहतर जगह दी। महिलाएँ-युवा वोटरों ने ‘नवाचार’, ‘रोजगार’, ‘महिला-सशक्तिकरण’ जैसे मुद्दों पर प्रतिक्रिया दी।
दूसरी ओर RJD-गठबंधन ने इस हिस्से-हिस्से में उतनी सक्रियता नहीं दिखाई जितना कि अपेक्षित था। - गठबंधन रणनीति की कमजोरियाँ
RJD-मुख्यालय गठबंधन में सीट वितरण, स्थानीय संगठन, चयन तथा सहयोग-समन्वय में चुनौतियाँ रही। उदाहरण-स्वरूप, RJD के पारंपरिक वोट बैंक में नए छोटे दलों-समर्थकों को समाहित करने में पिछड़ापन दिखा।
इसके विपरीत, NDA ने गठबंधन-बंधन को वक्त रहते मजबूत रखा। - पारंपरिक गढ़ों में झटके
Tejashwi Yadav की अपनी सीट-क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ी थी। उदाहरण के लिए, उनके पारिवारिक गढ़ Raghopur में ट्रेंडिंग में पीछे आना इस बात का संकेत था कि RJD की जड़ें कुछ जगह टूट रही थीं।
इस तरह से वोट-इमेज व भरोसे के स्तर पर असर हुआ। - वोटरों की उम्मीदें और असंतुष्टि
बिहार में बेरोज़गारी, विकास-घटित-संरचनाएं (इंफ्रास्ट्रक्चर), माइग्रेशन जैसी चुनौतियाँ व्यापक थीं। (Wikipedia)
RJD-भविष्य-वाद के स्तर पर सक्रिय थी, लेकिन वास्तविक उत्सर्जन-समय में कई वोटरों को यह दिख नहीं पाया कि “परिवर्तन” वास्तविक रूप ले रहा है।
संक्षिप्त निष्कर्ष
इस प्रकार, Tejashwi Yadav-RJD के लिए इस हार का कारण मात्र एक बिंदु नहीं है, बल्कि चलते समय के राजनीतिक वातावरण, वोटरों की बदलती प्राथमिकताएं, गठबंधन-रणनीति में कमजोरी, तथा स्थानीय गढ़ों में कमजोरी का संयुक्त परिणाम है।
यह एक ऐसा संकेत है कि बिहार-राजनीति अब सिर्फ जाति-परम्पराओं पर आधारित नहीं रह गई है — वोटरों को विकास, महिला-युवा भागीदारी, गठबंधन-संघठन-मजबूती, और स्थानीय प्रदर्शन भी मायने रखने लगा है।
