Patna 9 Nov 2025- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार पारंपरिक वोट बैंक की सीमाएँ टूटती दिखाई दे रही हैं। जातीय समीकरणों, महिला मतदाताओं और ग्रामीण नेटवर्क से परे एक नया वर्ग उभर रहा है — प्रवासी श्रमिक। ये वही लोग हैं जो सालों तक अपने राज्य से बाहर रहकर रोज़गार करते रहे और इस बार छठ पूजा और त्योहारी सीज़न में बिहार लौटकर वोट डालने का संकल्प लिए हुए हैं।
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इन्हीं मजदूरों को इस चुनाव का “X-Factor” बताया है, यानी ऐसा छिपा हुआ शक्ति-केंद्र जो अंतिम नतीजों को पूरी तरह बदल सकता है।
पृष्ठभूमि: पलायन की पीड़ा और राजनीति का नया चेहरा
बिहार दशकों से देश के उन राज्यों में रहा है जहाँ से सबसे अधिक श्रमिक रोज़गार के लिए दिल्ली, मुंबई, पंजाब, गुजरात और दक्षिण भारत की ओर पलायन करते हैं। सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, लगभग 1.5 करोड़ से अधिक बिहारी मजदूर राज्य से बाहर कार्यरत हैं।
कोविड-19 महामारी के बाद जब लाखों श्रमिक पैदल और रेलों से अपने घर लौटे, तब पलायन बिहार की राजनीति का केंद्रीय मुद्दा बन गया।
अब 2025 के चुनाव में वही प्रवासी फिर से लौटे हैं — लेकिन इस बार केवल घर लौटने के लिए नहीं, बल्कि अपना वोट देकर बदलाव लाने के लिए।
प्रशांत किशोर का विश्लेषण
लोकनीति के प्रणेता और जनसुराज अभियान के नेता प्रशांत किशोर का कहना है कि “महिलाएँ हर बार मतदान में बड़ा रोल निभाती हैं, लेकिन इस बार जो वोटरों की असली ताकत है, वो हैं — प्रवासी श्रमिक और युवा वर्ग।”
उनका दावा है कि —
“जो मजदूर पहले दिल्ली या पंजाब में काम कर रहे थे, वे इस बार छठ पूजा के बाद भी यहीं ठहरे हैं और अपने परिवारों के साथ मतदान करने वाले हैं। यही लोग बदलाव का संकेत देंगे।”
किशोर का यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि पहले चरण में 64% से अधिक मतदान दर दर्ज हुई, जो पिछली बार से कहीं ज़्यादा है। इससे संकेत मिलता है कि मतदाता सिर्फ जाति या पार्टी नहीं, बल्कि अपनी आर्थिक स्थिति और रोज़गार की हकीकत के आधार पर वोट देने के मूड में हैं।
प्रवासी श्रमिकों की सोच और मुद्दे
बिहार लौटे श्रमिकों के लिए रोजगार, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। उन्होंने कहा —
“हम दिल्ली-मुंबई में काम करके थक गए, अब चाहते हैं कि बिहार में ही काम मिले।”
यह भावना अब राजनीति में गूंज बन चुकी है।
- रोजगार और उद्योग: प्रवासी अब स्थायी उद्योगों की मांग कर रहे हैं ताकि पलायन रुक सके।
- शिक्षा और प्रशिक्षण: कौशल विकास योजनाओं पर सवाल उठ रहे हैं कि वास्तविक लाभ किसे मिला।
- स्थानीय अवसर: बड़े शहरों की ओर भागने की बजाय स्थानीय रोजगार विकल्पों की मांग बढ़ रही है।
यह वही वर्ग है जिसने पहले कभी राजनीतिक प्रभाव नहीं डाला था, लेकिन इस बार यह “निर्णायक वर्ग” के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीतिक समीकरण पर असर
1️⃣ कांग्रेस और महागठबंधन
कांग्रेस व राजद इस वर्ग को “गरीबी और पलायन-विरोधी” एजेंडा से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उनके नेता रोजगार सृजन और छोटे उद्योगों की स्थापना का वादा कर रहे हैं।
2️⃣ भाजपा और एनडीए
भाजपा का फोकस है — “विकसित बिहार, आत्मनिर्भर मजदूर”। वे केंद्र की योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और मुद्रा लोन को आधार बनाकर प्रवासियों को साधने की कोशिश कर रहे हैं।
3️⃣ प्रशांत किशोर और जनसुराज
प्रशांत किशोर खुद ग्राउंड लेवल पर “जनसुराज यात्रा” के माध्यम से उन प्रवासी परिवारों तक पहुंचे हैं जहाँ से बड़ी संख्या में युवा बाहर काम करते हैं। उनके अनुसार, यह वर्ग इस बार पारंपरिक दलों से अलग सोच सकता है।
विशेषज्ञों की राय
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि प्रवासी श्रमिक दो स्तर पर चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं:
- मतदान दर बढ़ाकर चुनावी परिणामों में अप्रत्याशित बदलाव ला सकते हैं।
- स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय बहस में ला सकते हैं — जैसे रोज़गार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ।
IIT पटना के समाजशास्त्री प्रो. सुशील सिंह के अनुसार,
“बिहार में जो वोट पहले निष्क्रिय थे, अब वे सक्रिय हो चुके हैं। यही 5–10% नया वोटिंग सेगमेंट सरकार बदलने की क्षमता रखता है।”
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 सिर्फ नेताओं और पार्टियों की लड़ाई नहीं, बल्कि प्रवासी मजदूरों की वापसी की कहानी बन चुका है।
जहाँ पहले लोग सोचते थे — “हमारा वोट क्या फर्क डालेगा?”, वहीं अब वही लोग कह रहे हैं — “इस बार वोट हमारा जवाब है।”
अगर प्रशांत किशोर की भविष्यवाणी सच होती है, तो यह चुनाव आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति का “माइग्रेशन टर्निंग पॉइंट” साबित हो सकता है।
