“एक देश, एक चुनाव” (One Nation, One Election) एक प्रस्तावित चुनावी सुधार है, जिसके तहत भारत में केंद्रीय और राज्य चुनावों को एक ही समय पर आयोजित किया जाए। वर्तमान में, भारत में केंद्रीय और राज्य चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। इस प्रस्ताव का उद्देश्य चुनावी प्रक्रिया को सरल, कम खर्चीला और अधिक प्रभावी बनाना है।
इस विचार के पीछे कुछ मुख्य कारण हैं:
- खर्च की बचत: बार-बार चुनाव होने से सरकारों और राजनीतिक पार्टियों को भारी खर्च करना पड़ता है। “एक देश, एक चुनाव” से इस खर्च में कमी आ सकती है।
- प्रशासनिक बोझ में कमी: चुनावों के दौरान प्रशासन को भारी तैयारियों और व्यवस्था की आवश्यकता होती है। अगर चुनाव एक साथ होते हैं, तो प्रशासन पर कम दबाव पड़ेगा।
- राजनीतिक स्थिरता: अगर केंद्रीय और राज्य चुनाव एक ही समय पर होते हैं, तो यह स्थिर राजनीतिक माहौल पैदा कर सकता है। इससे राजनीतिक अस्थिरता और बदलाव कम हो सकता है।
- चुनावों के प्रचार में कमी: जब अलग-अलग चुनाव होते हैं, तो पार्टी और उम्मीदवारों को बार-बार प्रचार करना पड़ता है, जो समय और संसाधनों की बर्बादी होती है। एक साथ चुनाव होने से यह परेशानी कम हो सकती है।
हालांकि, इस प्रस्ताव के विरोध में कुछ तर्क भी दिए जाते हैं:
- राज्य और केंद्र के मुद्दों का अंतर: केंद्र और राज्य स्तर पर अलग-अलग मुद्दे हो सकते हैं। राज्य चुनावों में स्थानीय मुद्दे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, जबकि राष्ट्रीय चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे प्रमुख होते हैं। इनका एक साथ होना स्थानीय राजनीति को नुकसान पहुंचा सकता है।
- संविधानिक चुनौतियाँ: “एक देश, एक चुनाव” को लागू करने के लिए संवैधानिक बदलाव की आवश्यकता होगी। वर्तमान में, केंद्र और राज्य चुनावों के बीच अंतर की व्यवस्था संविधान में निर्धारित है।
- पार्टी-निर्भरता: एक साथ चुनाव होने से छोटे दलों को नुकसान हो सकता है क्योंकि बड़े दलों के पास संसाधन और प्रचार का अधिक अवसर होगा।
इसलिए, “एक देश, एक चुनाव” का मुद्दा बहुत ही जटिल है और इसे लागू करने के लिए गहरी विचार-विमर्श और संवैधानिक बदलाव की आवश्यकता होगी।