भारत में किसान आंदोलनों ने कई बार राजनीतिक परिप्रेक्ष्य को प्रभावित किया है, लेकिन सीधे तौर पर किसी सरकार को गिराने का कारण किसान आंदोलन नहीं बने। हालांकि, कुछ आंदोलनों का इतना व्यापक असर पड़ा कि उन्होंने सरकारों को मजबूर किया या उन पर दबाव डाला, जिससे अंततः राजनीतिक परिणाम निकलते रहे। कुछ प्रमुख उदाहरण इस प्रकार हैं:
1. कृषि आंदोलन (1980s) और इंदिरा गांधी सरकार:
- आंदोलन: 1980 के दशक में पंजाब में हुए किसान आंदोलन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार को प्रभावित किया। यह आंदोलन विशेष रूप से भूमि सुधार और किसानों की कर्ज़ माफी के लिए था। इस आंदोलन ने सामाजिक असंतोष को उजागर किया, जो बाद में आतंकी आंदोलनों के रूप में उभरकर पंजाब के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने का कारण बना। हालांकि इस आंदोलन ने सीधे तौर पर सरकार को नहीं गिराया, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम रहे।
- परिणाम: अंततः 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हुई और पंजाब में आतंकवाद बढ़ा, जो उस समय की सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हुआ। यह आंदोलन सरकार के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती बन गया, हालांकि इसने सरकार को सीधे नहीं गिराया।
2. कृषि संकट और कर्ज़ माफी के लिए आंदोलन (1990s):
- आंदोलन: 1990 के दशक में महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में कर्ज़ के बोझ तले दबे किसानों द्वारा कई बड़े आंदोलनों का आयोजन किया गया। किसानों ने अपने ऋण की माफी की मांग की, और इस आंदोलन का समर्थन किसानों की आत्महत्याओं के खिलाफ भी किया गया।
- परिणाम: महाराष्ट्र में 1995 में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार को इन आंदोलनों के दबाव में आकर किसानों के लिए कई योजनाएँ लानी पड़ीं, जैसे ऋण माफी योजना। हालांकि, यह आंदोलन किसी सरकार को गिराने के बजाय, किसानों के हितों के लिए बदलाव का कारण बना।
3. किसान आंदोलन और 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार:
- आंदोलन: 2000 और 2004 के आसपास, किसानों के विभिन्न आंदोलनों ने विशेष रूप से कर्ज़ के बोझ और कृषि संकट के खिलाफ आवाज उठाई। 2004 में हुए आम चुनावों में यह आंदोलन भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बन गया।
- परिणाम: 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इस हार के पीछे किसानों की नाराजगी एक महत्वपूर्ण कारक बनी, क्योंकि उनका मानना था कि सरकार किसानों के संकटों और मुद्दों को नजरअंदाज कर रही थी। हालांकि, यह सीधे तौर पर किसान आंदोलन से जुड़ा परिणाम नहीं था, लेकिन इसने चुनाव परिणामों को प्रभावित किया।
4. 2020-2021 कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन और नरेंद्र मोदी सरकार:
- आंदोलन: 2020 में, भारतीय सरकार ने तीन कृषि कानून पारित किए, जिनका विरोध किसानों ने किया। विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने इस कानून के खिलाफ दिल्ली की सीमा पर लाखों की संख्या में विरोध प्रदर्शन किए।
- परिणाम: इस आंदोलन ने नरेंद्र मोदी सरकार को मजबूर किया कि वह इन कानूनों को 2021 में वापस ले। हालांकि इस आंदोलन ने सीधे तौर पर सरकार को गिराया नहीं, लेकिन यह इतना बड़ा और प्रभावशाली था कि सरकार को किसानों की मांगों के सामने झुकना पड़ा। यह आंदोलन भारतीय राजनीति में किसानों की ताकत को साबित करने वाला था, और इसे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना के रूप में देखा जाता है।
5. अर्थशास्त्र और कृषि संकट के कारण 1970s में सरकार की गिरावट:
- आंदोलन: 1970s के दौरान भारत में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर किए गए आंदोलनों ने उस समय की सरकार पर दबाव डाला। खासकर जयप्रकाश नारायण द्वारा नेतृत्व किए गए आंदोलन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ माहौल बनाया।
- परिणाम: यह आंदोलन सरकार के लिए एक राजनीतिक संकट बन गया, जो अंततः आपातकाल (1975) की घोषणा की वजह बना। बाद में इंदिरा गांधी की सरकार को 1977 में आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई। हालांकि यह एक व्यापक जनआंदोलन था, जिसमें किसानों का एक बड़ा योगदान था, और इसका असर इंदिरा गांधी की सत्ता के पतन में रहा।
निष्कर्ष:
भारत में किसान आंदोलनों ने अक्सर सरकारों पर दबाव डाला और कई बार राजनीतिक समीकरणों को बदलने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन ये आंदोलन सीधे तौर पर सरकारों को गिराने का कारण नहीं बने। हालांकि, आंदोलन बड़े राजनीतिक परिणाम उत्पन्न करने में सक्षम रहे हैं, जैसे कि चुनावी हार या कानूनों के निरस्त होने का दबाव।